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तंज़-ओ-मिज़ाह पर शेर

तंज़-ओ-मिज़ाह की शायरी

बयक-वक़्त कई डाईमेंशन रखती है, इस में हंसने हंसाने और ज़िंदगी की तलख़ियों को क़हक़हे में उड़ाने की सकत भी होती है और मिज़ाह के पहलू में ज़िंदगी की ना-हमवारियों और इंसानों के ग़लत रवय्यों पर तंज और मिज़ाह के पैराए में एक तख़लीक़-कार वो सब कह जाता है जिस के इज़हार की आम ज़िंदगी में तवक़्क़ो भी नहीं की जा सकती। ये शायरी पढ़िए और ज़िंदगी के उन दिल-चस्प इलाक़ों की सैर कीजिए।

कोट और पतलून जब पहना तो मिस्टर बन गया

जब कोई तक़रीर की जलसे में लीडर बन गया

अकबर इलाहाबादी

जो चाहता है कि बन जाए वो बड़ा शायर

वो जा के दोस्ती गाँठे किसी मुदीर के साथ

ज़फ़र कमाली

कलाम-ए-मीर समझे और ज़बान-ए-मीरज़ा समझे

मगर उन का कहा या आप समझें या ख़ुदा समझे

ऐश देहलवी

पहले हम को बहन कहा अब फ़िक्र हमीं से शादी की

ये भी सोचा बहन से शादी कर के क्या कहलाएँगे

राजा मेहदी अली ख़ाँ

वहाँ जो लोग अनाड़ी हैं वक़्त काटते हैं

यहाँ भी कुछ मुतशायर दिमाग़ चाटते हैं

दिलावर फ़िगार

के बज़्म-ए-शेर में शर्त-ए-वफ़ा पूरी तो कर

जितना खाना खा गया है उतनी मज़दूरी तो कर

दिलावर फ़िगार

अपने उस्ताद के शे'रों का तिया पाँचा किया

रहीम आप के फ़न में ये कमाल अच्छा है

रऊफ़ रहीम

मैं ने हर फ़ाइल की दुमची पर ये मिसरा' लिख दिया

काम हो सकता नहीं सरकार मैं रोज़े से हूँ

सय्यद ज़मीर जाफ़री

बुआ को तो देखो गहना पाता

बजट हाथ में जैसे धोबिन का खाता

सय्यद ज़मीर जाफ़री

ये रिश्वत के हैं पैसे दिन में कैसे लूँ मुसलमाँ हूँ

मैं ले सकता नहीं सर अपने ये इल्ज़ाम रोज़े में

ज़फ़र कमाली

आई सदा-ए-हक़ कि यही बंद-ओ-बस्त हैं

तेरे वतन के लोग तो मुर्दा-परस्त हैं

साग़र ख़य्यामी

सियासत-दाँ जो तब्ई मौत मरते

तो साज़िश की ज़रूरत ही होती

ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी

इल्म हासिल कर के भी मिलती नहीं है नौकरी

रहम के क़ाबिल है बस हालत हमारी इन दिनों

रंजूर अज़ीमाबादी

नहीं है बह्र में बे-वज़्न है 'रहीम' मगर

हमारी शाइ'री सुर में है और ताल में है

रऊफ़ रहीम

चेहरे तो झुर्रियों से भरे दिल जवान हैं

दिन में हैं शैख़ रात में सलमान-ख़ान हैं

साग़र ख़य्यामी

दिया है नाम कफ़न-चोर जब से तुम ने मुझे

पुरानी क़ब्रों के मुर्दे मिरी तलाश में हैं

पागल आदिलाबादी

औलाद की कसरत पे है सौ सौ यहाँ क़दग़न

मैं सौ से ज़ियादा तो बहर-तौर करूँगा

सय्यद सलमान गीलानी

कहीं गोली लिखा है और कहीं मार

ये गोलीमार लिक्खा जा रहा है

दिलावर फ़िगार

मुमकिन है कि हो जाए नशा इस से ज़रा सा

फिर आप का चालान भी हो सकता है इस से

अनवर मसूद

परेशानी से सर के बाल तक सब झड़ गए लेकिन

पुरानी जेब में कंघी जो पहले थी सो अब भी है

ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी

पायान-ए-कार ख़त्म हुआ जब ये तज्ज़िया

मैं ने कहा हुज़ूर तो बोले कि शुक्रिया

दिलावर फ़िगार

'अनवर' ख़ुदा करे कि ये सच्ची हो ख़बर

इक्कीसवीं सदी में वडेरे भी जाएँगे

अनवर मसूद

कफ़न की क़ीमत सुनेंगे मुर्दे तो इस के सदमे से जी उठेंगे

जनाज़ा उट्ठेगा अब किसी का अब किसी का मज़ार होगा

अकबर लाहौरी

उड़ा लेती हैं सब नक़दी तलाशी जेब की ले कर

हम अपनी ही कमाई उन से डर डर के छुपाते हैं

राजा मेहदी अली ख़ाँ

इलेक्शन फिर वो ज़िल-हिज्ज के महीने में कराएँगे

तो क्या दो दाँत के वोटर की फिर क़ुर्बानियाँ होंगी

खालिद इरफ़ान

तुम्हें ख़बर नहीं थी कैसी आन-बान की दुम

कटा के बेच ली तुम ने तो ख़ानदान की दुम

आदिल लखनवी

नर्स को देख के जाती है मुँह पे रौनक़

वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है

रऊफ़ रहीम

कहते थे मैच देखने वाले पुकार के

उस्ताद जा रहे हैं शब-ए-ग़म गुज़ार के

साग़र ख़य्यामी

दाढ़ी का नाम ले के हमें क्यों हो टोकती

दाढ़ी कोई ब्रेक है जो साइकल को रोकती

आदिल लखनवी

दुर्गत बने है चाय में बिस्कुट की जिस तरह

शादी के बा'द लोगो वही मेरा हाल है

नश्तर अमरोहवी

हम मानते हैं आप बड़े ग़म-गुसार हैं

लेकिन ये आस्तीन में क्या है दिखाइए

इक़बाल अज़ीम

सुना ये है कि वो सूफ़ी भी था वली भी था

अब इस के बा'द तो पैग़म्बरी का दर्जा है

दिलावर फ़िगार

सियाह ज़ुल्फ़ को जो बन-सँवर के देखते हैं

सफ़ेद बाल कहाँ अपने सर के देखते हैं

दिलावर फ़िगार

हमारा दोस्त तुफ़ैली भी है बड़ा शाएर

अगरचे एक बड़े आदमी का चमचा है

दिलावर फ़िगार

किसी तजरबे की तलाश में मिरा अक़्द-ए-सानवी हो गया

मिरी अहलिया को ख़बर नहीं मिरी अहलिया कोई और है

खालिद इरफ़ान

कर लीजे 'रज़िया' से मोहब्बत हम पर कीजे नज़र-ए-करम

वो बे-चारी फँस जाएगी हम उस को समझाएँगे

राजा मेहदी अली ख़ाँ

एक शादी तो ठीक है लेकिन

एक दो तीन चार हद कर दी

दिलावर फ़िगार

दस बच्चों के अब्बा हैं मगर है यही ख़्वाहिश

हर वक़्त ही बैठी रहे लैला मिरे आगे

नज़र बर्नी

बुरी बुरी नज़रें चेहरे पर डाल रहे हैं उफ़ तौबा

हम अपने दोनों गालों को जा के अभी धो आएँगे

राजा मेहदी अली ख़ाँ

मर्तबे में 'मीर' 'मोमिन' से है हर कोई बुलंद

इन में हर बे-बहर ग़ालिब से बड़ा फ़नकार है

आसी रिज़वी

बस में बैठी है मिरे पास जो इक ज़ोहरा-जबीं

मर्द निकलेगी अगर ज़ुल्फ़ मुँडा दी जाए

दिलावर फ़िगार

है अजब निज़ाम ज़कात का मिरे मुल्क में मिरे देस में

इसे काटता कोई और है इसे बाँटता कोई और है

ज़ियाउल हक़ क़ासमी

कहने लगे वो 'अनवर'-साहिब आप भी कितने भोले हैं

मेरे पास उठा लाए हैं केस ज़नाने थाने का

अनवर मसूद

मेहंदी लगे वो हाथ वो मीना सी उँगलियाँ

हम को तबाह कर गईं दिल्ली की लड़कियाँ

साग़र ख़य्यामी

जम्हूरियत इक तर्ज़-ए-हुकूमत है कि जिस में

घोड़ों की तरह बिकते हैं इंसान वग़ैरा

अनवर मसूद

जहाँ से तोहफ़तन भेजी गई थी ईद के दिन से

वहीं फिरती-फिराती गई है रान बकरे की

ज़फ़र इक़बाल

वस्ल की रात जो महबूब कहे गुड नाईट

क़ाएदा ये है कि इंग्लिश में दुआ दी जाए

दिलावर फ़िगार
बोलिए