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Agha Shayar Qazalbash's Photo'

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

1871 - 1940 | दिल्ली, भारत

उत्तर-क्लासिकी युग के महत्वपूर्ण शायर, दाग़ देहलवी के शागिर्द।

उत्तर-क्लासिकी युग के महत्वपूर्ण शायर, दाग़ देहलवी के शागिर्द।

आग़ा शाएर क़ज़लबाश के शेर

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पहले इस में इक अदा थी नाज़ था अंदाज़ था

रूठना अब तो तिरी आदत में शामिल हो गया

बड़े सीधे-साधे बड़े भोले-भाले

कोई देखे इस वक़्त चेहरा तुम्हारा

इस लिए कहते थे देखा मुँह लगाने का मज़ा

आईना अब आप का मद्द-ए-मुक़ाबिल हो गया

तुम कहाँ वस्ल कहाँ वस्ल की उम्मीद कहाँ

दिल के बहकाने को इक बात बना रखी है

मिरे करीम इनायत से तेरी क्या मिला

गुनाह कर के भी बे-मुज़द आब-ओ-दाना मिला

किस तरह जवानी में चलूँ राह पे नासेह

ये उम्र ही ऐसी है सुझाई नहीं देता

इक बात कहें तुम से ख़फ़ा तो नहीं होगे

पहलू में हमारे दिल-ए-मुज़्तर नहीं मिलता

पामाल कर के पूछते हैं किस अदा से वो

इस दिल में आग थी मिरे तलवे झुलस गए

लो हम बताएँ ग़ुंचा-ओ-गुल में है फ़र्क़ क्या

इक बात है कही हुई इक बे-कही हुई

कलेजे में हज़ारों दाग़ दिल में हसरतें लाखों

कमाई ले चला हूँ साथ अपने ज़िंदगी भर की

अबरू सँवारा करो कट जाएगी उँगली

नादान हो तलवार से खेला नहीं करते

हमीं हैं मौजिब-ए-बाब-ए-फ़साहत हज़रत-ए-'शाइर'

ज़माना सीखता है हम से हम वो दिल्ली वाले हैं

मिलना मिलना ये तो मुक़द्दर की बात है

तुम ख़ुश रहो रहो मिरे प्यारे जहाँ कहीं

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