noImage

अकमल इमाम

अकमल इमाम के शेर

182
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

आरज़ू टीस कर्ब तन्हाई

ख़ुद में कितना सिमट गया हूँ मैं

फ़साद रोकने कम-ज़र्फ़ लोग पहुँचे हैं

घरों में रह गए रौशन ज़मीर जितने थे

मेरा साया भी बढ़ गया मुझ से

इस सलीक़े से घट गया हूँ मैं

नई तहक़ीक़ ने क़तरों से निकाले दरिया

हम ने देखा है कि ज़र्रों से ज़माने निकले

ज़ेहन में अजनबी सम्तों के हैं पैकर लेकिन

दिल के आईने में सब अक्स पुराने निकले

ज़िंदगी के बहुत क़रीब जा

फ़ासला कुछ तो अपने ध्यान में रख

हर एक हर्फ़ से जीने का फ़न नुमायाँ हो

कुछ इस तरह की इबारत निसाब में लिखिए

'अकमल' आज का इंसाँ कितना बे-तहम्मुल है

दिल में कुछ ख़लिश उभरी और दाग़ दी साज़िश

उँगलियों के हुनर से 'अकमल'

शक्ल पाती है चाक पर मिट्टी

अपने एहसास की शिद्दत को बुझाने के लिए

मैं नई तर्ज़ के ख़ुश-फ़िक्र रिसाले मांगों

Recitation

aah ko chahiye ek umr asar hote tak SHAMSUR RAHMAN FARUQI

Jashn-e-Rekhta | 2-3-4 December 2022 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate, New Delhi

GET YOUR FREE PASS
बोलिए