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अल्लामा तालिब जौहरी

1929 - 2020 | कराची, पाकिस्तान

पाकिस्तान के प्रतिष्ठित इस्लामी विद्वान, ख़तीब, शायर और शोधकर्ता, अपनी फ़सीह-ओ-बलीग़ ख़िताबत के लिए मशहूर

पाकिस्तान के प्रतिष्ठित इस्लामी विद्वान, ख़तीब, शायर और शोधकर्ता, अपनी फ़सीह-ओ-बलीग़ ख़िताबत के लिए मशहूर

अल्लामा तालिब जौहरी के शेर

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इन गली कूचों में बहनों का मुहाफ़िज़ कौन है

कस्ब-ए-ज़र की दौड़ में बस्ती से माँ-जाए गए

कहाँ तक फ़ल्सफ़ा अल्फ़ाज़ के आसेब से बचता

म'आनी ज़ेहन के अंदर भी हर्फ़-आलूद होते हैं

एक कुएँ की गहराई से मिस्र के तख्त-ए-शाही तक

देखने वाली आँख को कितने नादीदा बाज़ार मिले

पहुँची दिलों की आग हमारे ख़ियाम तक

लेकिन धुआँ तो जाएगा दरबार-ए-शाम तक

कर रहे हैं ज़िंदगी में मा'नविय्यत की तलाश

ख़्वाब में डूबा हुआ तालाब सहरा और मैं

चाँद तक उड़ कर पहुँचने का नहीं इम्कान जा

जा चकोरी अपने घर वालों का कहना मान जा

घटे तो जेहल-ए-मुरक्कब बढ़े तो कर्ब-ए-हयात

ये आगही भी मुसीबत है आदमी के लिए

मुहसिनों की आँख से काजल चुरा लेते हैं लोग

सोचते क्या हो नज़र रक्खा करो सामान पर

ग़म-ए-'आशिक़ी तिरी ख़ैर हो मिरी काएनात सँवार दी

जिसे रद्द किया था दिमाग़ ने वही बात दिल में उतार दी

दयार-ए-हुस्न में तज्दीद-ए-'आशिक़ी के लिए

हम ऐसे लोग ज़रूरी हैं हर सदी के लिए

बात कही और कह कर ख़ुद ही काट भी दी

ये भी एक पैराया था समझाने का

उस बदन की रुत हवा-ए-मेहरबाँ ले आई है

है कहाँ की बात दीवानी कहाँ ले आई है

अव्वल अव्वल 'इल्म फ़क़त इक नुक़्ता था

आख़िर आख़िर जेहल बना तावीलों से

बिछड़े थे तो साकित पलकें सूखे पेड़ की शाख़ें थीं

उस से बिछड़ कर दूर चले तो कोसों तक सैलाब रहा

जिस्म ने अपनी 'उम्र गुज़ारी सिंध के रेगिस्तानों में

दिल कमबख़्त बड़ा ज़िद्दी था आख़िर तक पंजाब रहा

कीसा-ए-जाँ में तुझे देने को अब कुछ भी नहीं

सो दु'आ-ए-ख़ैर लेता जा ठहर अजनबी

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