बलराज मेनरा की कहानियाँ
वो
शांति व संतुष्टि के लिए बेचैन इंसान की यह कहानी। माचिस की तलाश को सुकून की तलाश से ताबीर किया जा सकता है। एक शख़्स को रात में सिगरेट पीने की इच्छा होती है। सारे घर में माचिस तलाश करने के बाद वो बाहर निकल पड़ता है। हलवाई की भट्टी और चेकपोस्ट पर आग न मिलने के बाद वो सुनसान लंबी सड़क पर चलता चला जाता है। मरम्मत किये हुए पुल के पास जलती लालटेन से सिगरेट जलाने की कोशिश करते हुए पकड़ा जाता है और पुलिस उसे थाने ले जाती है। रात-भर वहां रहने के बाद जब वो घर की तरफ़ लौटता है तो एक शख़्स से माचिस मांगता है तो वो कहता है कि मुझे तो ख़ुद माचिस की तलाश है।
अना का ज़ख्म
ये कहानी एक व्यक्ति की हीन भावना की उत्पत्ति है जो अपने दोस्त राही के टेढ़े स्वभाव और मानसिक अभिमान को बर्दाश्त नहीं कर पाता। उसके मन-माने रवैय्यों से कुढ़ता है और बदला लेने की ठान लेता है। सोचता है कि उसे अहंकार के खोल से बाहर निकालेगा जबकि उसके सारे कृत्य ये स्पष्ट करते हैं कि वो ख़ुद स्व की सख़्त क़ैद में है उसी लिए राही से ईर्ष्या भी करता है।
हवस की औलाद
इस कहानी में प्रजनन क्षमता पर प्रश्न चिन्ह लगाया गया है। राही अपने दोस्त कृष्ण को ख़त लिख कर कहता है कि तुम बाप बन गए हो जो कि दुनिया का सबसे आसान काम है, लेकिन मैं उसे औलाद नहीं हवस कहता हूँ। मुझे ऐसे बच्चे से नफ़रत होती है जो शादी के बाद यकजाई के नतीजे में पैदा हो जाते हैं। कृष्ण को उसकी मनोवैज्ञानिक कुंठाओं से कोई मतलब नहीं वो उन सब चीज़ों से ऊपर हो कर उसे दोस्त रखता है। राही की ज़िंदगी यूँ ही धूप-छाँव की तरह गुज़रती रहती है फिर बैंगलोर में उसे एक लड़की मिलती है जिससे उसे मुहब्बत हो जाती है और वह उससे शादी कर लेता है। वह बच्चा पैदा करना चाहता है लेकिन उसकी पत्नी कहती है कि मुझे बच्चों में कोई दिलचस्पी नहीं।
शहर की रात
व्यवहार के टेढ़ेपन के कारण परेशान एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो सामाजिक सिद्धांतों और वैधानिक पाबंदियों का उलंघन करता है। बस में उससे सिगरेट पीने के लिए मना किया जाता है तो अगले स्टेशन पर उतर जाता है। रात-भर इधर उधर शहर की सड़कों पर फिरता रहता है फिर जब वो दूसरी बस में बैठता है और उसे सिगरेट पीने से मना किया जाता है तो वो फिर उतर जाता है।
बस स्टॉप
इस कहानी का घटना स्थल एक बस-स्टॉप है, एक व्यक्ति बस के इंतज़ार में खड़ा गुज़रती बसों, कारों और रिक्शों पर बैठे लोगों के चेहरे और हर चेहरे के हाव-भाव देख रहा है। धीरे-धीरे आवागमन कम हो जाता है, सड़क ख़ाली हो जाती है, वो थक कर अपना बोझ अपने एक पैर पर डाल देता है। फिर भी बस नहीं आती, और वह इंतज़ार की मूरत बना खड़ा रहता है।
कम्पोज़ीशन-3
"जीवन की समस्याओं में उलझे हुए एक ऐसे कलाकार की रूदाद है, जो शिक्षित, स्वस्थ और अपने पेशे में माहिर है लेकिन उसे कहीं नौकरी नहीं मिल रही है। कहीं से कामयाबी की कोई उम्मीद नज़र नहीं आती। एक दिन उसके कमरे में दो चिड़ियाँ फंस जाती हैं जिसकी वजह से वो ख़ुश होता है कि वह उन्हें भून कर खाएगा।"
आत्मा राम
कहानी ज़िंदगी की निरर्थकता पर आधारित है। एक बेटा अपने बाप की लाश के अंतिम संस्कार करने श्मशान घाट जाता है, बाप की अचानक मौत ने उसे हैरान कर दिया है। उसका बाप एक सिद्धांतवादी, व्यवस्थित ज़िंदगी गुज़ारने वाला, अपना बोझ ख़ुद उठाने वाला शख़्स था जिसने मरते समय भी किसी को कष्ट नहीं दिया। ऐसी जगह पर उसकी मौत हुई जहाँ उसका कोई परिचित नहीं था, लावारिस समझ कर उसे श्मशान घाट पहुंचा दिया जाता है। अंतिम संस्कार करते हुए बेटा सोचता है जिस व्यक्ति ने अपनी ज़िंदगी में इतने बड़े-बड़े कारनामे अंजाम दिए, वो आज इतनी मामूली सतह पर है। अतीत की बातें याद करके उसका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है और उसकी साँसें थम जाती हैं।
भागवती
भागवती ग़रीबी से उत्पन्न समस्याओं पर आधारित कहानी है। विधवा भागवती के पास आजीविका का कोई साधन नहीं, अपनी बेटी की परवरिश और ज़िंदगी गुज़राने के लिए गर्भपात करवाने का पेशा अपना लेती है। इस तरह लोगों के गुनाहों की भी वह राज़दार है, इसलिए लोग उससे बड़ी ख़ुश-दिली से पेश आते हैं। अपने पेशे के सारे गुण वो अपनी बेटी को सिखा देती है। उसके इस पेशे में बनवारी नाम का लड़का उसकी मदद करता है, जिसे भगवती अपने बेटे की तरह अज़ीज़ रखती है। एक दिन उसकी बेटी कौनैन की गोलीयाँ बड़ी बे-सब्री से तलाश करती है। भागवती के पूछने पर मालूम होता है कि वो ख़ुद अपने लिए तलाश कर रही है, बनवारी की संतान उसकी कोख में पल रहा है।
आख़री कम्पोज़ीशन
प्रस्तुत कहानी में भयानक वातावरण और दृश्यों का वर्णन प्रतीकात्मक ढंग से किया गया है। अभिव्यक्ति की आज़ादी पर ख़ौफ़-ओ-दहश्त के पहरे ने कलाकारों से शब्द छीन लिये हैं। प्रगति की ओर अग्रसर ज़िंदगी में पेश आने वाली समस्याएं, ख़ौफ़, आतंक, हत्या और अत्याचार व अन्याय के वातावरण को बड़ी सुंदरता से कहानी में दर्ज हैं।
साहिल की ज़िल्लत
"यह आर्थिक और शारीरिक रूप से असंतुष्ट व्यक्ति की कहानी है जिसे न तो माँ की मामता मिली और न ही परिवार का प्रेम। उसे केवल ये मालूम है कि ज़िंदगी गुज़ारने के लिए पैसे की ज़रूरत है। पैसा और मात्र पैसा। जब पैसे आ जाते हैं तो शारीरिक संतुष्टि की राहें भी खुल जाती हैं, जिस्मानी लज़्ज़तें सामयिक रूप से संतुष्ट तो करती हैं मगर तन्हाई और अविश्वास को ख़त्म नहीं कर पाती हैं।"
जिस्म की दीवार
"ये कहानी इंसान की बेचैन, बिखरी और अव्यवस्थित ज़िंदगी का बिंब है। निगम थका मांदा सर्द कमरे, सर्द बिस्तर, और अँधेरे में अपने दहकते हुए जिस्म को आसूदा करने की ग़रज़ से लेटता है लेकिन थोड़ी ही देर बाद उसे अपना बिस्तर भी जलता हुआ महसूस होता है। उसके कानों में सरगोशी होती है कि तुम शराब और सिगरेट छोड़ दो। उसका दोस्त डाक्टर माथुर भी यही चाहता है लेकिन वो ये चीज़ें नहीं छोड़ सकता क्योंकि यही चीज़ें तो हैं जो उसके ग़म को हल्का करती हैं जिनमें उसके बाप-दादा का ग़म भी शामिल है जो जवानी में ही स्वर्गवासी हो गए थे।"
मक़्तल
"इस कहानी को निर्दयी और निष्ठुर दुनिया के विरुद्ध संघर्ष की एक कहानी के रूप में पढ़ा जा सकता है। कहानी में एक व्यक्ति ख़ुद को संगीन दीवारों के एक बंद अँधेरे कमरे के बाहर पाता है। उसे नहीं मालूम कि उसे कौन वहाँ पटक गया है, वो पिछली ज़िंदगी की सारी बातें भूल चुका है और उसकी ज़िंदगी समस्त स्वाभाविक संवेदनाओं से भी वंचित है लेकिन उसे एक ना-मालूम लज़्ज़त का एहसास होता है, शायद वो ज़ख़्म की लज़्ज़त है जो उसे हँसा सकती है और रुला भी सकती है।"
कम्पोज़ीशन-1
एक व्यक्ति इस कश्मकश में है कि सूरज से उसका ऐसा क्या सम्बंध है जो सूरज उसकी आँख खुलने के साथ उगता है, सारा दिन साये की तरह साथ रहता है। कई तरह के ख़्यालात उसके ज़ेहन में आते हैं लेकिन कोई संतोषजनक जवाब उसे नहीं मिल पाता, आख़िर में एक अजनबी उसके कान में फुसफुसाता है कि तुम सूरज और साये का केंद्र हो। सूरज और साया तुम्हारे गिर्द घूमता है।
कम्पोज़ीशन-2
इस कहानी का पात्र मौत के फ़रिश्ते के लिए मुश्किल बना हुआ है, जबकि दूसरे लोग आसानी से उसकी गिरफ़्त में आ जाते हैं। उस व्यक्ति ने ख़ुद को तंग और अँधेरे कोने तक सीमित कर लिया है जहाँ की हर चीज़ स्याह है। स्याह क़लम से स्याह काग़ज़ पर वो अफ़साने लिखता रहता है, एक दिन वो अफ़साना सुनाने की ग़रज़ से बाहर निकलता है तो भीड़ उसे जूते घूँसे से मार मार कर मौत के घाट उतार देता है।
कम्पोज़ीशन-5
"इस कहानी में हर-रोज़ के बदलते हालात और भावनाओं को प्रस्तुत किया गया है। पीड़ा ये है कि कोई भी दिन दुर्घटनाओं से ख़ाली नहीं होता। अफ़साने में चित्रित कहानी के अनुसार कोई दिन कर्फ़्यू का है, तो किसी दिन शहर की हालत तहस-नहस नज़र आती है। किसी दिन आँसू गैस का क़हर और किसी रोज़ किसी परिचित की मौत।"