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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Ehteram Islam's Photo'

एहतराम इस्लाम

1949 | इलाहाबाद, भारत

एहतराम इस्लाम के शेर

याद था 'सुक़रात' का क़िस्सा सभी को 'एहतिराम'

सोचिए ऐसे में बढ़ कर सच को सच कहता तो कौन

लड़खड़ा कर गिर पड़ी ऊँची इमारत दफ़अतन

दफ़अतन तामीर की कुर्सी पे खंडर जम गया

तौक़ीर अँधेरों की बढ़ा दी गई शायद

इक शम्अ जो रौशन थी बुझा दी गई शायद

साथ रखिए काम आएगा बहुत नाम-ए-ख़ुदा

ख़ौफ़ गर जागा तो फिर किस को सदा दी जाएगी

शेर के रूप में देते रहना

'एहतिराम' अपनी ख़बर आगे भी

इस बार भी शोलों ने मचा डाली तबाही

इस बार भी शोलों को हवा दी गई शायद

उसी से मुझ को मिला इश्तियाक़ मंज़िल का

मिरे सफ़र को फ़ज़ा-ए-सफ़र उसी से मिली

अहल-ए-दुनिया से मुझे तो कोई अंदेशा था

नाम तेरा किस लिए मिरे लबों पर जम गया

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