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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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फ़ातिमा मेहरू

1990 | लाहौर, पाकिस्तान

आधुनिक उर्दू नज़्म की प्रतिनिधि आवाज़, अपनी रचनात्मक विशिष्टता के कारण वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय।

आधुनिक उर्दू नज़्म की प्रतिनिधि आवाज़, अपनी रचनात्मक विशिष्टता के कारण वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय।

फ़ातिमा मेहरू के शेर

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इक नज़र सरसरी दो चार ज़रूरी बातें

घर में रक्खा कोई अख़बार समझता है मुझे

इक घड़ी मुझ को चाहिए ऐसी

वक़्त जिस में तमाम तेरा हो

तिरे हिजरत के मारे बस्तियों से लड़ रहे हैं

जिन्हें यकसर तिरे दिल में ठिकाना चाहिए था

छोड़ जाएँगे तुझे चाँद के चर्चे सुन कर

चढ़ते सूरज के पुजारी हैं तिरे दीवाने

आरज़ू है तुझे बातों में लगा कर इक दिन

एक मुहतात सलीक़े से बिखरता देखें

जैसा जी में आए वैसा कर जाना

इतना भी आसान नहीं है मर जाना

ये ग़लत-फ़हमियों का मौसम है

अपने दिल को सँभाल कर रखना

तभी तो धुँदली हैं उस की मेरी तमाम राहें

वो मुझ को कोहरे की चाँद रातों में सोचता है

कुछ नहीं माँगते मगर कुछ लोग

कुछ नहीं छोड़ते हमारे पास

मैं एक वो हूँ जो आप ख़ुद से भी मुख़्तलिफ़ है

मैं वो नहीं हूँ जो आप मुझ को समझ रहे थे

नहीं चराग़ जलाएँगे अब किसी दर पर

हम आप अपनी मोहब्बत मज़ार कर लेंगे

वो कोह-ए-क़ाफ़ का जैसे मकीन हो गया है

बिछड़ के और ज़ियादा हसीन हो गया है

तस्वीरों पर मत जाना

साली झूटी होती हैं

और इस से पेशतर उस को भुला सकूँ यकसर

उसे मैं उस की तरह याद आना चाहती हूँ

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