aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
noImage

फ़ज़ल हुसैन साबिर

1884 - 1962 | बुरहानपुर, भारत

फ़ज़ल हुसैन साबिर

ग़ज़ल 58

अशआर 5

तू जफ़ाओं से जो बदनाम किए जाता है

याद आएगी तुझे मेरी वफ़ा मेरे बाद

शगुफ़्ता बाग़-ए-सुख़न है हमीं से 'साबिर'

जहाँ में मिस्ल-ए-नसीम-ए-बहार हम भी हैं

तुम ने क्यूँ दिल में जगह दी है बुतों को 'साबिर'

तुम ने क्यूँ काबा को बुत-ख़ाना बना रक्खा है

'साबिर' तेरा कलाम सुनें क्यूँ अहल-ए-फ़न

बंदिश अजब है और अजब बोल चाल है

  • शेयर कीजिए

उन की मानिंद कोई साहब-ए-इदराक कहाँ

जो फ़रिश्ते नहीं समझे वो बशर समझे हैं

पुस्तकें 1

 

"बुरहानपुर" के और शायर

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

GET YOUR PASS
बोलिए