हनीफ़ अख़गर

ग़ज़ल 23

अशआर 32

इज़हार पे भारी है ख़मोशी का तकल्लुम

हर्फ़ों की ज़बाँ और है आँखों की ज़बाँ और

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किसी के जौर-ए-मुसलसल का फ़ैज़ है 'अख़्गर'

वगरना दर्द हमारे सुख़न में कितना था

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जो कुशूद-ए-कार-ए-तिलिस्म है वो फ़क़त हमारा ही इस्म है

वो गिरह किसी से खुलेगी क्या जो तिरी जबीं की शिकन में है

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बे-शक असीर-ए-गेसू-ए-जानाँ हैं बे-शुमार

है कोई इश्क़ में भी गिरफ़्तार देखना

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इश्क़ में दिल का ये मंज़र देखा

आग में जैसे समुंदर देखा

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वीडियो 19

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

हनीफ़ अख़गर

हनीफ़ अख़गर

हनीफ़ अख़गर

हनीफ़ अख़गर

हनीफ़ अख़गर

हनीफ़ अख़गर

हनीफ़ अख़गर

हनीफ़ अख़गर

हनीफ़ अख़गर

हनीफ़ अख़गर

हनीफ़ अख़गर

हनीफ़ अख़गर

अज़्म-ए-सफ़र से पहले भी और ख़त्म-ए-सफ़र से आगे भी

हनीफ़ अख़गर

इस तरह अहद-ए-तमन्ना को गुज़ारे जाइए

हनीफ़ अख़गर

इस तरह अहद-ए-तमन्ना को गुज़ारे जाइए

हनीफ़ अख़गर

ख़ल्वत-ए-जाँ में तिरा दर्द बसाना चाहे

हनीफ़ अख़गर

ख़ल्वत-ए-जाँ में तिरा दर्द बसाना चाहे

हनीफ़ अख़गर

देखना ये इश्क़ में हुस्न-ए-पज़ीराई के रंग

हनीफ़ अख़गर

वो दिल में और क़रीब-ए-रग-ए-गुलू भी मिले

हनीफ़ अख़गर

हनीफ़ अख़गर

हनीफ़ अख़गर

हाल-ए-दिल-ए-बीमार समझ में चारागरों की आए कम

हनीफ़ अख़गर

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