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हसीबुल हसन के शेर

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हुज़ूर आप तकल्लुफ़ में क्यों पड़े हुए हैं

मरे हुओं के जनम-दिन नहीं मनाता कोई

लाख मीठे हों तिरे शहर के चश्मे लेकिन

हम तिरे शहर को ख़ुश-आब नहीं कह सकते

क़सम है तेरे तग़ाफ़ुल की तुझ से पहले मुझे

नहीं पता था कि एहसास-ए-कमतरी क्या है

तुम्हारे हुस्न का सदक़ा उतरना लाज़मी है

सो यूँ करो किसी बच्चे को माथा चूमने दो

पागल किया है इश्क़ ने आधा जो रह गया

अब आधे सर के दर्द का पूरा मरीज़ हूँ

मैं कई काम तो दानिस्ता ग़लत करता था

ताकि वो नुक़्स निकाले कि नहीं ऐसे कर

तुझे पता था मैं तेरे बग़ैर कुछ भी नहीं

ज़रा तरस भी आया तुझे बिछड़ते हुए

हमारे दिल से निकलते हुओं को सात सलाम

वो इस लिए कि वो इस हब्स में मकीन रहे

तुम्हारे जाने के बाद हम ने सुकून ढूँडा कुछ इस तरह से

बिछड़ने वालों के पाँव पड़ना उन्हें जुदाई से बाज़ रखना

हमारे बाद कोई सर-परस्त मिल सका

यतीम-ख़ाने में रक्खा गया मोहब्बत को

पहले भी मेरे गाँव में घायल हैं तीन शख़्स

आज़ार-ए-आगही का मैं चौथा मरीज़ हूँ

मैं बहुत सोच के बिछड़ा था मोहर्रम में हसीब

मैं ने उस शख़्स को रोने की सुहूलत दी थी

हम ऐसे लोग ज़ाएअ' हो रहे हैं

ख़ुदा चुप-चाप देखे जा रहा है

सितारे देखने वाले हमें बताते हैं

हमारे होंट तुम्हारी जबीं को तरसेंगे

तुम्हारी आँखों पे नज़्म कहने से पहले हम ने भिगोई आँखें

सुना हुआ था ज़मीन नम हो तो अच्छी होती है काश्त-कारी

तेरे ख़्वाबों के पीछे भागी थीं

मेरी आँखों में पड़ गए छाले

ज़माने-भर की दुआएँ मिरे लिए थीं मगर

मैं चाहता ही नहीं था कि सब्र जाए

उसे बताना परिंदे उसे बुलाते हैं

उसे बताना कि शाइ'र उदास है उस का

हमारी ख़ैर है लेकिन बस इक गुज़ारिश है

हमारे बाद किसी से भी यूँ नहीं करना

उस के मेआ'र पर ख़ुदा लाए

उस नज़र तक तो गए हैं हम

ये साथ गाँव में एक छोटा सा काम है बस

मिरी उदासी उदास मत हो मैं रहा हूँ

शाहज़ादी की मर्ज़ी है लेकिन

मुझ से अच्छा ग़ुलाम कोई नहीं

अब उस की मर्ज़ी मुसाफ़िर कहे कि गर्द-ए-पा

मैं उस के साथ मुसलसल सफ़र में रहता हूँ

पिछले जनम का कोई त'अल्लुक़ था उस के साथ

देखे बग़ैर मुझ को ख़द-ओ-ख़ाल याद थे

हमारी वहशत किसी पुराने खंडर के आसेब की अमानत

हमारी ग़ज़लें हमारी देवी की एक तिरछी नज़र का सदक़ा

हमी प्रेम चंद की कहानियों के लोग हैं

वो लोग जिन की उम्र को उधार ने निगल लिया

मेरे पास तसल्ली उस के पास आँसू

ख़ुदा के सामने बेबस खड़े हैं हम दोनों

दाद कब पाते हैं उस 'मीर' की दीवानी से

ज़ंग-आलूद तख़य्युल से खरोंचे हुए शेर

ख़ौफ़ इस दर्जा मुसल्लत था तिरे बाद 'हसन'

दिल धड़कता था तो हम ख़ुद से लिपट जाते थे

ख़ुदा के बाद उसे मुझ पे मान था क्यूँकि

ख़ुदा के बाद उसे मैं ही प्यार करता था

अभी से सोच लो फिर वापसी नहीं होगी

तिलिस्म बढ़ता ही जाएगा दिन-ब-दिन उस का

हमारे आँसू किसी ठिकाने तो लग रहे हैं

फ़ुरात के बद-नसीब पानी का क्या बनेगा

तुम्हारा हुस्न ये खुलता है जैसे धीरे से

हमारे शेर भी ऐसे ही देर-पा होंगे

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