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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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हसीबुल हसन

ग़ज़ल 32

अशआर 33

हुज़ूर आप तकल्लुफ़ में क्यों पड़े हुए हैं

मरे हुओं के जनम-दिन नहीं मनाता कोई

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लाख मीठे हों तिरे शहर के चश्मे लेकिन

हम तिरे शहर को ख़ुश-आब नहीं कह सकते

क़सम है तेरे तग़ाफ़ुल की तुझ से पहले मुझे

नहीं पता था कि एहसास-ए-कमतरी क्या है

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तुम्हारे हुस्न का सदक़ा उतरना लाज़मी है

सो यूँ करो किसी बच्चे को माथा चूमने दो

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पागल किया है इश्क़ ने आधा जो रह गया

अब आधे सर के दर्द का पूरा मरीज़ हूँ

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