aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1890 - 1976
जिगर के समकालीन , मसनवी " प्याम-ए-सावित्री" के लिए मशहूर, हदीस-ए-ख़ुदी के शीर्षक से आत्मकथा प्रकाशित
आस्ताँ भी कोई मिल जाएगा ऐ ज़ौक-ए-नियाज़
सर सलामत है तो सज्दा भी अदा हो जाएगा
दर्द हो दुख हो तो दवा कीजे
फट पड़े आसमाँ तो क्या कीजे
नहीं कि जुर्म-ए-मोहब्बत का ए'तिराफ़ नहीं
मगर हूँ ख़ुश कि मिरी ये ख़ता मुआ'फ़ नहीं
मरज़-ए-इश्क़ को शिफ़ा समझे
दर्द को दर्द की दवा समझे
हम और उठाएँगे एहसान जाँ-नवाज़ी के
हमें तो साँस भी लेना गिराँ गुज़रता है
Hadees-e-Khudi
1959
Intikhab-e-Kalam Jigar Barelvi
1960
Jigar Barelvi
2000
Jigar Barelvi: Shakhsiyat Aur Fan
1970
Nala-e-Jansoz
1927
Partav-e-Ilham
2012
Payam-e-Savitari
1954
रस
sehat-e-zaban
Sehat-e-Zaban
क़दम मिला के ज़माने के साथ चल न सके बहुत सँभल के चले हम मगर सँभल न सके
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