aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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जिगर बरेलवी

1890 - 1976

जिगर के समकालीन , मसनवी " प्याम-ए-सावित्री" के लिए मशहूर, हदीस-ए-ख़ुदी के शीर्षक से आत्मकथा प्रकाशित

जिगर के समकालीन , मसनवी " प्याम-ए-सावित्री" के लिए मशहूर, हदीस-ए-ख़ुदी के शीर्षक से आत्मकथा प्रकाशित

जिगर बरेलवी

ग़ज़ल 35

नज़्म 1

 

अशआर 16

क़दम मिला के ज़माने के साथ चल सके

बहुत सँभल के चले हम मगर सँभल सके

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इश्क़ को एक उम्र चाहिए और

उम्र का कोई ए'तिबार नहीं

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तुम नहीं पास कोई पास नहीं

अब मुझे ज़िंदगी की आस नहीं

नहीं इलाज-ए-ग़म-ए-हिज्र-ए-यार क्या कीजे

तड़प रहा है दिल-ए-बे-क़रार किया कीजे

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दर्द हो दुख हो तो दवा कीजे

फट पड़े आसमाँ तो क्या कीजे

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पुस्तकें 15

चित्र शायरी 2

 

ऑडियो 5

आह हम हैं और शिकस्ता-पाइयाँ

जान अपने लिए खो लेने दे

तुम नहीं पास कोई पास नहीं

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