ख़ालिद नदीम शानी के शेर
कहाँ से आई थी आख़िर तिरी तलब मुझ में
ख़ुदा ने मुझ को बनाया तो मैं अकेला था
मैं अगर ख़ुद को मार डालूँ तो
क्या बचेगा तिरी कहानी में
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हमी वो इल्म के रौशन चराग़ हैं जिन को
हवा बुझाती नहीं है सलाम करती है
जिस तरह आप ने बीमार से रुख़्सत ली है
साफ़ लगता है जनाज़े में नहीं आएँगे
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टैग : बेवफ़ाई
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तुम इन लकीरों में इक ख़ुशी भी तलाश कर लो तो मो'जिज़ा है
कि मैं तो बचपन से जानता हूँ मिरी हथेली का नाम दुख है
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टैग : महरूमी
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हज़रत-ए-जोश के दीवान का जब ज़िक्र चले
कितनी हसरत से हमें उर्दू ज़बाँ देखती है
दर्द की चाह में पहले तो कुरेदूँ शब-भर
फिर उसी ज़ख़्म को सीने का मज़ा लेता हूँ
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टैग : ज़ख़्म
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मिरी आरज़ुओं के सीप का किसी आब-ए-नैसाँ से मेल कर
मुझे आश्ना-ए-विसाल कर मिरी बेकली को क़रार दे
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टैग : विसाल
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