ख़ालिद नदीम शानी
ग़ज़ल 12
अशआर 8
कहाँ से आई थी आख़िर तिरी तलब मुझ में
ख़ुदा ने मुझ को बनाया तो मैं अकेला था
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मैं अगर ख़ुद को मार डालूँ तो
क्या बचेगा तिरी कहानी में
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हमी वो इल्म के रौशन चराग़ हैं जिन को
हवा बुझाती नहीं है सलाम करती है
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जिस तरह आप ने बीमार से रुख़्सत ली है
साफ़ लगता है जनाज़े में नहीं आएँगे
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तुम इन लकीरों में इक ख़ुशी भी तलाश कर लो तो मो'जिज़ा है
कि मैं तो बचपन से जानता हूँ मिरी हथेली का नाम दुख है
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