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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Mahfooz Mohammad's Photo'

महफूज़ मोहम्मद

1978 | दिल्ली, भारत

शायर, लेखक और दिल्ली वक्फ बोर्ड के अनुभाग अधिकारी

शायर, लेखक और दिल्ली वक्फ बोर्ड के अनुभाग अधिकारी

महफूज़ मोहम्मद के शेर

अपनी अम्मी को मोहब्बत से जो देखा मैं ने

पूरी जन्नत मिरी आँखों में सिमट आई है

तुम्हारे साथ होने से मुझे तस्कीन मिलती है

मिरे हमदम मिरे दिलबर हमारे साथ रहना तुम

क़यादत फिर से पाने को है ये अल्लामा का नुस्ख़ा

सबक़ पढ़ ले अदालत के सदाक़त के शुजाअ'त के

क्या कहा ख़ुशबुएँ लुटाता हूँ

मैं तिरी हाँ में हाँ मिलाता हूँ

हम तुम्हारे तो हर तरह से हैं

और किसी के किसी तरह भी नहीं

दरिया ने शर्त बाँधी थी क़ीमत पे प्यास की

हम ने भी जान दे दी मगर तिश्नगी दी

मुझे तुम से उलझना है किसी दिन

बहुत से मसअले सुलझा सकूँगा

फ़ज़ाओं में मोहब्बत घोलता हूँ

मैं हिन्दी हूँ मैं उर्दू बोलता हूँ

किधर निशाना लगा रहे हो कहाँ निगाहें टिकी हुई हैं

ये कैसे पकड़ी हुई है तुम ने कमाँ तुम्हारी मुड़ी हुई है

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