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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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मीर अहमद नवेद

1955 | पाकिस्तान

मीर अहमद नवेद

ग़ज़ल 11

अशआर 13

चराग़-हा-ए-तकल्लुफ़ बुझा दिए गए हैं

उठाओ जाम कि पर्दे उठा दिए गए हैं

जो मिल गए तो तवंगर मिल सके तो गदा

हम अपनी ज़ात के अंदर छुपा दिए गए हैं

पेश-ए-ज़मीं रहूँ कि पस-ए-आसमाँ रहूँ

रहता हूँ अपने साथ मैं चाहे जहाँ रहूँ

मैं कहीं आऊँ मैं कहीं जाऊँ

वक़्त जैसे रुका सा रहता है

मुमकिन नहीं है शायद दोनों का साथ रहना

तेरी ख़बर जब आई अपनी ख़बर गई है

पुस्तकें 1

 

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