मीर अहमद नवेद
ग़ज़ल 11
अशआर 13
कुछ इस तरह से कहा मुझ से बैठने के लिए
कि जैसे बज़्म से उस ने उठा दिया है मुझे
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मैं अपने हिज्र में था मुब्तला अज़ल से मगर
तिरे विसाल ने मुझ से मिला दिया है मुझे
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ज़ख़्म-ए-तलाश में है निहाँ मरहम-ए-दलील
तू अपना दिल न हार मोहब्बत बहाल रख
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जो मिल गए तो तवंगर न मिल सके तो गदा
हम अपनी ज़ात के अंदर छुपा दिए गए हैं
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मुमकिन नहीं है शायद दोनों का साथ रहना
तेरी ख़बर जब आई अपनी ख़बर गई है
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