मोहम्मद अब्बास सफ़ीर के शेर
न जाएगा मेरे दिल से ख़याल-ए-अबरू-ए-दिलबर
कि तेग़ों ही के साए में तो है जन्नत मुसलमाँ की
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टैग : अबरू
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कहाँ के दोस्त कैसे अक़रबा जब वक़्त पड़ता है
मुसीबत में किसी की दोस्ती से कुछ नहीं होता