मोहम्मद अहमद के शेर
मुझ से ज़िद है तो फिर उस ज़िद को निभाने के लिए
मैं जो मर जाऊँ तो फिर आप भी मर जाइएगा
गाह हो जाता हूँ मैं अपनी अना का क़ैदी
मैं न आऊँ तो फिर आ कर मुझे छुड़वाएगा
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टैग : क़ैद
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कहीं था मैं मुझे होना कहीं था
मैं दरिया था मगर सहरा-नशीं था
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