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मोहम्मद अल्वी के शेर
नया साल दीवार पर टाँग दे
पुराने बरस का कैलेंडर गिरा
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टैग : नया साल
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अब न 'ग़ालिब' से शिकायत है न शिकवा 'मीर' का
बन गया मैं भी निशाना रेख़्ता के तीर का
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टैग : रेख़्ता
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दिन भर बच्चों ने मिल कर पत्थर फेंके फल तोड़े
साँझ हुई तो पंछी मिल कर रोने लगे दरख़्तों पर
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कमरे में मज़े की रौशनी हो
अच्छी सी कोई किताब देखूँ
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रात पड़े घर जाना है
सुब्ह तलक मर जाना है
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टैग : घर
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लड़की अच्छी है 'अल्वी'
नाम उस का मर जाना है
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उस से मिले ज़माना हुआ लेकिन आज भी
दिल से दुआ निकलती है ख़ुश हो जहाँ भी हो
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टैग : विदाई
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रोज़ अच्छे नहीं लगते आँसू
ख़ास मौक़ों पे मज़ा देते हैं
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टैग : आँसू
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हाए वो लोग जो देखे भी नहीं
याद आएँ तो रुला देते हैं
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आग अपने ही लगा सकते हैं
ग़ैर तो सिर्फ़ हवा देते हैं
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बस के नीचे कोई नहीं आता फिर भी
बस में बैठ के बेहद घबराता हूँ मैं
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ऑफ़िस में भी घर को खुला पाता हूँ मैं
टेबल पर सर रख कर सो जाता हूँ मैं
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गाड़ी आती है लेकिन आती ही नहीं
रेल की पटरी देख के थक जाता हूँ मैं
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मरने के डर से और कहाँ तक जियेगा तू
जीने के दिन तमाम हुए इंतिक़ाल कर
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देखा तो सब के सर पे गुनाहों का बोझ था
ख़ुश थे तमाम नेकियाँ दरिया में डाल कर
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टैग : गुनाह
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इक याद रह गई है मगर वो भी कम नहीं
इक दर्द रह गया है सो रखना सँभाल कर
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लम्बी सड़क पे दूर तलक कोई भी न था
पलकें झपक रहा था दरीचा खुला हुआ
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दिन ढल रहा था जब उसे दफ़ना के आए थे
सूरज भी था मलूल ज़मीं पर झुका हुआ
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टैग : मौत
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माना कि तू ज़हीन भी है ख़ूब-रू भी है
तुझ सा न मैं हुआ तो भला क्या बुरा हुआ
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नज़रों से नापता है समुंदर की वुसअतें
साहिल पे इक शख़्स अकेला खड़ा हुआ
ग़म बहुत दिन मुफ़्त की खाता रहा
अब उसे दिल से निकाला चाहिए
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मैं उस के बदन की मुक़द्दस किताब
निहायत अक़ीदत से पढ़ता रहा
अँधेरी रातों में देख लेना
दिखाई देगी बदन की ख़ुश्बू
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टैग : बदन
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यार आज मैं ने भी इक कमाल करना है
जिस्म से निकलना है जी बहाल करना है
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इस भरी दुनिया से वो चल दिया चुपके से यूँ
जैसे किसी को भी अब उस की ज़रूरत न थी
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दरवाज़े पर पहरा देने
तन्हाई का भूत खड़ा है
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टैग : तन्हाई
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घर में क्या आया कि मुझ को
दीवारों ने घेर लिया है
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टैग : घर
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मैं नाहक़ दिन काट रहा हूँ
कौन यहाँ सौ साल जिया है
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टैग : मौत
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सुब्ह से खोद रहा हूँ घर को
ख़्वाब देखा है ख़ज़ाने वाला
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मुतमइन है वो बना कर दुनिया
कौन होता हूँ मैं ढाने वाला
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रात-भर सोचा किए और सुब्ह-दम अख़बार में
अपने हाथों अपने मरने की ख़बर देखा किए
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गली में कोई घर अच्छा नहीं था
मगर कुछ खिड़कियाँ अच्छी लगी हैं
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नहा कर भीगे बालों को सुखाती
छतों पर लड़कियाँ अच्छी लगी हैं
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बिछड़ते वक़्त ऐसा भी हुआ है
किसी की सिसकियाँ अच्छी लगी हैं
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अच्छे दिन कब आएँगे
क्या यूँ ही मर जाएँगे
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मौत न आई तो 'अल्वी'
छुट्टी में घर जाएँगे
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टैग : मौत
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अब तो चुप-चाप शाम आती है
पहले चिड़ियों के शोर होते थे
ये कहाँ दोस्तों में आ बैठे
हम तो मरने को घर से निकले थे
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मुँह-ज़बानी क़ुरआन पढ़ते थे
पहले बच्चे भी कितने बूढ़े थे
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उसे मैं ने भी कल देखा था 'अल्वी'
नए कपड़े पहन के जा रहा था
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किसी से कोई तअल्लुक़ रहा न हो जैसे
कुछ इस तरह से गुज़रते हुए ज़माने थे
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परिंदे दूर फ़ज़ाओं में खो गए 'अल्वी'
उजाड़ उजाड़ दरख़्तों पे आशियाने थे
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टैग : परिंदा
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कभी तो ऐसा भी हो राह भूल जाऊँ मैं
निकल के घर से न फिर अपने घर में आऊँ मैं
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ग़ज़ल कही है कोई भाँग तो नहीं पी है
मुशाइरे में तरन्नुम से क्यूँ सुनाऊँ मैं
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बिखेर दे मुझे चारों तरफ़ ख़लाओं में
कुछ इस तरह से अलग कर कि जुड़ न पाऊँ मैं
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गवाही देता वही मेरी बे-गुनाही की
वो मर गया तो उसे अब कहाँ से लाऊँ मैं
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बहुत ख़ुश हुए आईना देख कर
यहाँ कोई सानी हमारा न था
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सामने दीवार पर कुछ दाग़ थे
ग़ौर से देखा तो चेहरे हो गए
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अब किसी की याद भी आती नहीं
दिल पे अब फ़िक्रों के पहरे हो गए
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सब नमाज़ें बाँध कर ले जाऊँगा मैं अपने साथ
और मस्जिद के लिए गूँगी अज़ाँ रख जाऊँगा
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