मुख़तार तलहरी
अशआर 16
इक तो वैसे ही उदासी की घटा छाई है
और छेड़ोगे तो आँसू भी निकल सकते हैं
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आप मज़लूम के अश्कों से न खिलवाड़ करें
ये वो दरिया हैं जो शहरों को निगल सकते हैं
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रौशनी के लिए 'मुख़्तार' जलाए थे चराग़
क्या ख़बर थी कि मिरे हाथ भी जल सकते हैं
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