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अक़ील नोमानी

1958 | बरेली, भारत

समकालीन शायर, मुशायरों में लोकप्रिय

समकालीन शायर, मुशायरों में लोकप्रिय

अक़ील नोमानी

ग़ज़ल 21

अशआर 23

लगता है कहीं प्यार में थोड़ी सी कमी थी

और प्यार में थोड़ी सी कमी कम नहीं होती

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मुस्कुराने की क्या ज़रूरत है

आप यूँ भी उदास लगते हैं

बड़ी ही कर्बनाक थी वो पहली रात हिज्र की

दोबारा दिल में ऐसा दर्द आज तक नहीं हुआ

अनगिनत सफ़ीनों में दीप जगमगाते हैं

रात ने लुटाया है रंग-ओ-नूर पानी पर

बस इतनी सी बात थी उस की ज़ुल्फ़ ज़रा लहराई थी

ख़ौफ़-ज़दा हर शाम का मंज़र सहमी सी हर रात मिली

पुस्तकें 2

 

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