अक़ील नोमानी
ग़ज़ल 21
अशआर 23
मुस्कुराने की क्या ज़रूरत है
आप यूँ भी उदास लगते हैं
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बड़ी ही कर्बनाक थी वो पहली रात हिज्र की
दोबारा दिल में ऐसा दर्द आज तक नहीं हुआ
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अनगिनत सफ़ीनों में दीप जगमगाते हैं
रात ने लुटाया है रंग-ओ-नूर पानी पर
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बस इतनी सी बात थी उस की ज़ुल्फ़ ज़रा लहराई थी
ख़ौफ़-ज़दा हर शाम का मंज़र सहमी सी हर रात मिली
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