हिजाब, मुन्नी बाई उ’र्फ़ मंझली (1860)कलकत्ता की मशहूर तवाएफ़ थीं। निहायत बाज़ौक़ थीं, शे’र कहती थीं, और इस सिलसिले में उस्ताद शाइ’र अ’ब्दुल-ग़्ाुफ़ूर नस्साख़ के एक शागिर्द से इस्लाह लेती थीं। ‘दाग़’ देहलवी से उनके इ’श्क़ की दास्तान बहुत मशहूर है।
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