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नसीम सहर

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नसीम सहर के शेर

आवाज़ों की भीड़ में इतने शोर-शराबे में

अपनी भी इक राय रखना कितना मुश्किल है

कभी तो सर्द लगा दोपहर का सूरज भी

कभी बदन के लिए इक किरन ज़ियादा हुई

दिये अब शहर में रौशन नहीं हैं

हवा की हुक्मरानी हो गई क्या

लफ़्ज़ भी जिस अहद में खो बैठे अपना ए'तिबार

ख़ामुशी को इस में कितना मो'तबर मैं ने किया

ब-नाम-ए-अम्न-ओ-अमाँ कौन मारा जाएगा

जाने आज यहाँ कौन मारा जाएगा

सफ़र का मरहला-ए-सख़्त ही ग़नीमत था

ठहर गए तो बदन की थकन ज़ियादा हुई

जो याद-ए-यार से गुफ़्त-ओ-शुनीद कर ली है

तो गोया फूल से ख़ुश्बू कशीद कर ली है

हुदूद-ए-वक़्त के दरवाज़े मुंतज़िर हैं 'नसीम'

कि तू ये फ़ासले कर के उबूर दस्तक दे

जो बात की थी हवा में बिखरने वाली थी

जो ख़त लिखा था वो पुर्ज़ों में बटने वाला था

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Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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