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प्रवीन राय के शेर

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पूछ कर कौन दिल दुखाता है

हादसे कब बता के होते हैं

उस से ही तो चलते हैं कारोबार गुलशन के

वो ही रात-रानी है वो ही गुल-हज़ारा है

इस से पहले के छीन लेते लोग

हम ने ख़ुशियाँ ही दान में दे दीं

रब्त टूटा तो यूँ लगा जैसे

पंख नोचे गए हों बुलबुल के

आप अपनी ही मैं क़िस्मत से छला जाता हूँ

क्या सज़ा मुझ को मिली है ये भले होने की

आप को देवता समझता था

आप तो ख़ूब देवता निकले

यही कल ज़ख़्म में तब्दील होंगे

भरम जो 'इश्क़ के पाले गए हैं

मेरे अश'आर चुराने वालो

क्या मिरा दर्द चुरा सकते हो

कुछ तो कहिये हमारे बारे में

कौन हैं हम हमें पता तो चले

यूँ समझिए ग़ज़ल मुकम्मल है

जब मोहब्बत बग़ल में बैठी हो

ख़ामोशी में रहने वाले लोगों को

सन्नाटे की गूँज सुनाई देती है

पहले ज़ख़्मों से हम नवाज़े गए

फिर दिलासा दिया गया हम को

उन के नख़रे हैं क़ाफ़िए जैसे

उन का ग़ुस्सा रदीफ़ जैसा है

कहाँ पर खो गई अब ढूँढता हूँ

भरोसा नाम की चाबी मिली थी

कोई आया नहीं मनाने हमें

हम ने नाराज़ हो के देख लिया

मुझ को तन्हाइयों ने मारा है

भीड़ देखो मिरे जनाज़े की

जौहरी क्यों नहीं परख पाया

गोलकुंडा की खान थे हम तो

हम ने पानी कहा था और उन ने

प्यास दे दी है प्यास के बदले

कौन भला अपनी मर्ज़ी से बिछड़ा था

दोनों की अपनी अपनी मजबूरी थी

अधूरे रह गए हम इस लिए भी

कोई हम को मुकम्मल चाहिए था

तुम्हारी याद की बंजर ज़मीं पर

सुख़न के फूल बोए जा रहे हैं

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