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Qamar Moradabadi's Photo'

क़मर मुरादाबादी

1910 - 1987

क़मर मुरादाबादी का परिचय

उपनाम : 'क़मर'

मूल नाम : सिराजुल हक़ क़मर

जन्म : 08 Aug 1910 | मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश

निधन : 02 May 1987 | मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश

अब मैं समझा तिरे रुख़्सार पे तिल का मतलब

दौलत-ए-हुस्न पे दरबान बिठा रक्खा है

व्याख्या

रुख़्सार अर्थात गाल, दौलत-ए-हुस्न अर्थात हुस्न की दौलत, दरबान अर्थात रखवाला। यह शे’र अपने विषय की नवीनता के कारण लोकप्रिय है। शे’र में केन्द्रीय स्थिति “रुख़्सार पर तिल” को प्राप्त है क्योंकि उसी के अनुरूप शायर ने विषय पैदा किया है। प्रियतम के गाल को दरबान(रखवाला) से तुलना करना शायर का कमाल है। और जब दौलत-ए-हुस्न कहा तो जैसे प्रियतम के सरापा को आँखों के सामने लाया हो।

रुख़्सार पर तिल होना सौन्दर्य का एक प्रतीक समझा जाता है। मगर चूँकि प्रियतम सुंदरता की आकृति है इस विशेषता के अनुरूप शायर ने यह ख़्याल बाँधा है कि जिस तरह बुरी नज़र से सुरक्षित रखने के लिए ख़ूबसूरत बच्चों के गाल पर काला टीका लगाया जाता है उसी तरह मेरे प्रियतम को लोगों की बुरी दृष्टि से बचाने के लिए ख़ुदा ने उसके गाल पर तिल रखा है। और जिस तरह धन-दौलत को लुटेरों से सुरक्षित रखने के लिए उस पर प्रहरी (रखवाले) बिठाए जाते हैं, ठीक उसी तरह ख़ुदा ने मेरे महबूब के हुस्न को बुरी नज़र से सुरक्षित रखने के लिए उसके गाल पर तिल बनाया है।

शफ़क़ सुपुरी

व्याख्या

रुख़्सार अर्थात गाल, दौलत-ए-हुस्न अर्थात हुस्न की दौलत, दरबान अर्थात रखवाला। यह शे’र अपने विषय की नवीनता के कारण लोकप्रिय है। शे’र में केन्द्रीय स्थिति “रुख़्सार पर तिल” को प्राप्त है क्योंकि उसी के अनुरूप शायर ने विषय पैदा किया है। प्रियतम के गाल को दरबान(रखवाला) से तुलना करना शायर का कमाल है। और जब दौलत-ए-हुस्न कहा तो जैसे प्रियतम के सरापा को आँखों के सामने लाया हो।

रुख़्सार पर तिल होना सौन्दर्य का एक प्रतीक समझा जाता है। मगर चूँकि प्रियतम सुंदरता की आकृति है इस विशेषता के अनुरूप शायर ने यह ख़्याल बाँधा है कि जिस तरह बुरी नज़र से सुरक्षित रखने के लिए ख़ूबसूरत बच्चों के गाल पर काला टीका लगाया जाता है उसी तरह मेरे प्रियतम को लोगों की बुरी दृष्टि से बचाने के लिए ख़ुदा ने उसके गाल पर तिल रखा है। और जिस तरह धन-दौलत को लुटेरों से सुरक्षित रखने के लिए उस पर प्रहरी (रखवाले) बिठाए जाते हैं, ठीक उसी तरह ख़ुदा ने मेरे महबूब के हुस्न को बुरी नज़र से सुरक्षित रखने के लिए उसके गाल पर तिल बनाया है।

शफ़क़ सुपुरी

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