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Ram Awtar Gupta Muztar's Photo'

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

1936 | नजीबाबाद, भारत

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर के शेर

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रह-ए-क़रार अजब राह-ए-बे-क़रारी है

रुके हुए हैं मुसाफ़िर सफ़र भी जारी है

बे-दीन हुए ईमान दिया हम इश्क़ में सब कुछ खो बैठे

और जिन को समझते थे अपना वो और किसी के हो बैठे

तेरा होना मान कर गोया

तुझ को तस्लीम कर रहा हूँ मैं

दिल का सुकून रिज़्क़ के हंगामे खा गए

सुख आदमी का चंद निवालों ने डस लिया

शाम-ए-अवध ने ज़ुल्फ़ में गूँधे नहीं हैं फूल

तेरे बग़ैर सुब्ह-ए-बनारस उदास है

सफ़र का रुख़ बदल कर देखता हूँ

कुछ अपनी सम्त चल कर देखता हूँ

दुनिया तेरे नाम से मुझ को पहचाने

इश्क़ में ऐसा रुस्वा कर दे या-अल्लाह

लम्हा लम्हा बिखर रहा हूँ मैं

अपनी तकमील कर रहा हूँ मैं

आए मेरे होंटों तक जो पैमाना नहीं आता

मिरी ख़ुद्दारियों को हाथ फैलाना नहीं आता

मैं कैसे तय करूँ बे-सम्त रास्तों का सफ़र

कहाँ है शहर-ए-तमन्ना कोई पता तो दे

देख लिया क्या जाने शाम की सूनी आँखों में

झील में सूरज अपनी सारी लाली डाल गया

जो छू लूँ आसमाँ पाँव की धरती खींच लेता है

वो मुझ को क्यूँ मिरे क़द से बड़ा होने नहीं देता

ज़रा देखें तो दुनिया कैसे कैसे रंग भरती है

चलो हम अपने अफ़्साने का ग़म उनवान रखते हैं

नामूस-ए-ज़िंदगी ग़म-ए-इंसाँ में ढाल कर

सूती है रात जाम से सूरज निकाल कर

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