aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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रियाज़ मजीद

ग़ज़ल 22

नज़्म 1

 

अशआर 4

वक़्त ख़ुश ख़ुश काटने का मशवरा देते हुए

रो पड़ा वो आप मुझ को हौसला देते हुए

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इक घर बना के कितने झमेलों में फँस गए

कितना सुकून बे-सर-ओ-सामानियों में था

सिमटती फैलती तन्हाई सोते जागते दर्द

वो अपने और मिरे दरमियान छोड़ गया

इसी हुजूम में लड़-भिड़ के ज़िंदगी कर लो

रहा जाएगा दुनिया से दूर जा कर भी

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पुस्तकें 5

 

ऑडियो 6

आँच आएगी न अंदर की ज़बाँ तक ऐ दिल

जो सैल-ए-दर्द उठा था वो जान छोड़ गया

निशान क़ाफ़ला-दर-क़ाफ़ला रहेगा मिरा

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