Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Riyaz Khairabadi's Photo'

रियाज़ ख़ैराबादी

1853 - 1934 | ख़ैराबाद, भारत

शराब पर शायरी के लिए प्रसिध्द , जब कि कहा जाता है कि उन्हों ने शराब को कभी हाथ नहीं लगाया।

शराब पर शायरी के लिए प्रसिध्द , जब कि कहा जाता है कि उन्हों ने शराब को कभी हाथ नहीं लगाया।

रियाज़ ख़ैराबादी के शेर

11.4K
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

ग़म मुझे देते हो औरों की ख़ुशी के वास्ते

क्यूँ बुरे बनते हो तुम नाहक़ किसी के वास्ते

मेहंदी लगाए बैठे हैं कुछ इस अदा से वो

मुट्ठी में उन की दे दे कोई दिल निकाल के

उठवाओ मेज़ से मय-ओ-साग़र 'रियाज़' जल्द

आते हैं इक बुज़ुर्ग पुराने ख़याल के

हमारी आँखों में आओ तो हम दिखाएँ तुम्हें

अदा तुम्हारी जो तुम भी कहो कि हाँ कुछ है

बच जाए जवानी में जो दुनिया की हवा से

होता है फ़रिश्ता कोई इंसाँ नहीं होता

ये सुन के आज हश्र में वो बात भी तो हो

हँस कर कहा कि दिन है कहीं रात भी तो हो

ये क़ैस-ओ-कोहकन के से फ़साने बन गए कितने

किसी ने टुकड़े कर के सब हमारी दास्ताँ रख दी

धोके से पिला दी थी उसे भी कोई दो घूँट

पहले से बहुत नर्म है वाइज़ की ज़बाँ अब

बे-अब्र रिंद पीते नहीं वाइ'ज़ो शराब

करते हैं ये गुनाह भी रहमत के ज़ोर पर

किसी का हंस के कहना मौत क्यूँ आने लगी तुम को

ये जितने चाहने वाले हैं सब बे-मौत मरते हैं

कुछ भी हो 'रियाज़' आँख में आँसू नहीं आते

मुझ को तो किसी बात का अब ग़म नहीं होता

हम को 'रियाज़' जानते हैं मानते हैं सब

हिन्दोस्तान में धूम हमारी ज़बाँ की है

मिरे घर मिस्ल तबर्रुक के ये सामाँ निकला

आस्तीं क़ैस की फ़रहाद का दामाँ निकला

मय-ख़ाने में क्यूँ याद-ए-ख़ुदा होती है अक्सर

मस्जिद में तो ज़िक्र-ए-मय-ओ-मीना नहीं होता

अज़ाँ का काम चल जाए जो नाक़ूस-ए-बरहमन से

बड़ा ये बोझ उतरे मोअज़्ज़िन तेरी गर्दन से

क्या शराब-ए-नाब ने पस्ती से पाया है उरूज

सर चढ़ी है हल्क़ से नीचे उतर जाने के ब'अद

देखिएगा सँभल कर आईना

सामना आज है मुक़ाबिल का

पाऊँ तो इन हसीनों का मुँह चूम लूँ 'रियाज़'

आज इन की गालियों ने बड़ा ही मज़ा दिया

मय-ख़ाने में मज़ार हमारा अगर बना

दुनिया यही कहेगी कि जन्नत में घर बना

सय्याद तेरा घर मुझे जन्नत सही मगर

जन्नत से भी सिवा मुझे राहत चमन में थी

वो बोले वस्ल की हाँ है तो प्यारी प्यारी रात

कहाँ से आई ये अल्लाह की सँवारी रात

आप आए तो ख़याल-ए-दिल-ए-नाशाद आया

आप ने याद दिलाया तो मुझे याद आया

इस वास्ते कि आव-भगत मय-कदे में हो

पूछा जो घर किसी ने तो का'बा बता दिया

इस से अच्छे दश्त-ए-सहरा इस से अच्छे गर्द-बाद

आलम-ए-वहशत में मेरा घर कोई घर रह गया

अल्लाह-रे नाज़ुकी कि जवाब-ए-सलाम में

हाथ उस का उठ के रह गया मेहंदी के बोझ से

है भी कुछ या नहीं मैं हाथ लगा कर देखूँ

हाथ उठाए तो ज़रा अपनी कमर से कोई

'रियाज़' एहसास-ए-ख़ुद्दारी पे कितनी चोट लगती है

किसी के पास जब जाता है कोई मुद्दआ' ले कर

लुट गई शब को दो शय जिस को छुपाते थे बहुत

इन हसीनों से कोई पूछे कि क्या जाता रहा

उठता है एक पाँव तो थमता है एक पाँव

नक़्श-ए-क़दम की तरह कहाँ घर बनाएँ हम

शैख़-जी गिर गए थे हौज़ में मयख़ाने के

डूब कर चश्मा-ए-कौसर के किनारे निकले

हम बंद किए आँख तसव्वुर में पड़े हैं

ऐसे में कोई छम से जो जाए तो क्या हो

आलम-ए-हू में कुछ आवाज़ सी जाती है

चुपके चुपके कोई कहता है फ़साना दिल का

घर में पहुँचा था कि आई नज्द से आवाज़-ए-क़ैस

पाँव मेरा एक अंदर एक बाहर रह गया

शेर-ए-तर मेरे छलकते हुए साग़र हैं 'रियाज़'

फिर भी सब पूछते हैं आप ने मय पी कि नहीं

आफ़त हमारी जान को है बे-क़रार दिल

ये हाल है कि सीने में जैसे हज़ार दिल

हिन्दोस्ताँ में धूम है किस की ज़बान की

वो कौन है 'रियाज़' को जो जानता नहीं

आबाद करें बादा-कश अल्लाह का घर आज

दिन जुमअ' का है बंद है मय-ख़ाने का दर आज

वो पूछते हैं शौक़ तुझे है विसाल का

मुँह चूम लूँ जवाब ये है इस सवाल का

रहमत से 'रियाज़' उस की थे साथ फ़रिश्ते दो

इक हूर जो बढ़ जाती तो और मज़ा होता

जाने वाले हम उस कूचे में आने वाले

अच्छे आए हमें दीवाना बनाने वाले

मर गए फिर भी तअल्लुक़ है ये मय-ख़ाने से

मेरे हिस्से की छलक जाती है पैमाने से

बात दिल की ज़बान पर आई

आफ़त अब मेरी जान पर आई

मेरे आग़ोश में यूँही कभी जा तू भी

जिस अदा से तिरी आँखों में हया आई है

किस किस तरह बुलाए गए मय-कदे में आज

पहुँचे बना के शक्ल जो हम रोज़ा-दार की

नासेह के सर पर एक लगाई तड़ाक़ से

फिर हाथ मल रहे हैं कि अच्छी पड़ी नहीं

उन्हीं में से कोई आए तो मयख़ाने में जाए

मिलूँ ख़ुद जा के मैं अहल-ए-हरम से हो नहीं सकता

बाग़बाँ काम हमें क्या है वो उजड़े कि रहे

जब हमीं बाग़ से निकले तो नशेमन कैसा

आगे कुछ बढ़ कर मिलेगी मस्जिद-ए-जामे 'रियाज़'

इक ज़रा मुड़ जाइएगा मय-कदे के दर से आप

ऐसी ही इंतिज़ार में लज़्ज़त अगर हो

तो दो घड़ी फ़िराक़ में अपनी बसर हो

पी के वाइज़ नदामत है मुझे

पानी पानी हूँ तिरी तक़रीर से

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

GET YOUR PASS
बोलिए