सईद क़ैस के शेर
चाँद मशरिक़ से निकलता नहीं देखा मैं ने
तुझ को देखा है तो तुझ सा नहीं देखा मैं ने
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ये वाक़िआ' मिरी आँखों के सामने का है
शराब नाच रही थी गिलास बैठे रहे
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टैग : नशा
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तुम अपने दरिया का रोना रोने आ जाते हो
हम तो अपने सात समुंदर पीछे छोड़ आए हैं
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चेहरा चेहरा ग़म है अपने मंज़र में
और आँखों के पीछे एक नुमाइश है
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अपनी आवाज़ सुनाई नहीं देती मुझ को
एक सन्नाटा कि गलियों में बहुत बोलता है
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उसी के लुत्फ़ से बस्ती निहाल है सारी
तमाम पेड़ लगाए हुए उसी के हैं
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