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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
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मैं खिल नहीं सका कि मुझे नम नहीं मिला साक़ी फ़ारुक़ी
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मैं तेरे ज़ुल्म दिखाता हूँ अपना मातम करने के लिए साक़ी फ़ारुक़ी
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ये कौन आया शबिस्ताँ के ख़्वाब पहने हुए साक़ी फ़ारुक़ी
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रात नादीदा बलाओं के असर में हम थे साक़ी फ़ारुक़ी
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हैं सेहर-ए-मुसव्विर में क़यामत नहीं करते साक़ी फ़ारुक़ी
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हिरास फैल गया है ज़मीन-दानों में साक़ी फ़ारुक़ी