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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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शौक़ बहराइची

1884 - 1964 | बहराइच, भारत

अग्रणी हास्य/व्यंग शायरों में विख्यात।

अग्रणी हास्य/व्यंग शायरों में विख्यात।

शौक़ बहराइची

ग़ज़ल 28

नज़्म 1

 

अशआर 6

बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था

हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा

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हर मुल्क इस के आगे झुकता है एहतिरामन

हर मुल्क का है फ़ादर हिन्दोस्ताँ हमारा

बड़े हौसले थे पहले बड़े वलवले थे पहले

जो अमल का वक़्त आया हुए आप नौ-दो-ग्यारा

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अभी तो हज़रत-ए-वाइज़ मज़म्मत मय की करते हैं

अगर मय-ख़ाने में उन का गुज़र होगा तो क्या होगा

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भला 'शौक़' देखूँ क्यूँकर रुख़-ए-पुर-शिकन का मंज़र

मिरे दाँत ही कहाँ हैं जो मैं खा सकूँ छुआरा

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हास्य 2

 

पुस्तकें 2

 

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