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मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

1806 - 1869 | दिल्ली, भारत

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता के ऑडियो

ग़ज़ल

इधर माइल कहाँ वो मह-जबीं है

फ़सीह अकमल

इश्क़ की मेरे जो शोहरत हो गई

फ़सीह अकमल

कहूँ मैं क्या कि क्या दर्द-ए-निहाँ है

फ़सीह अकमल

जब रक़ीबों का सितम याद आया

फ़सीह अकमल

था ग़ैर का जो रंज-ए-जुदाई तमाम शब

फ़सीह अकमल

मर गए हैं जो हिज्र-ए-यार में हम

फ़सीह अकमल

यार को महरूम-ए-तमाशा किया

फ़सीह अकमल

रोज़ ख़ूँ होते हैं दो-चार तिरे कूचे में

फ़सीह अकमल

है बद बला किसी को ग़म-ए-जावेदाँ न हो

फ़सीह अकमल

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