1809 - 1869 | दिल्ली, भारत
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इज़हार-ए-इश्क़ उस से न करना था 'शेफ़्ता'
ये क्या किया कि दोस्त को दुश्मन बना दिया
इतनी न बढ़ा पाकी-ए-दामाँ की हिकायत
दामन को ज़रा देख ज़रा बंद-ए-क़बा देख
हम तालिब-ए-शोहरत हैं हमें नंग से क्या काम
बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा
Deewan-e-Shefta
1954
दीवान-ए-शेफ़ता
1985
गुलशन-ए-बेख़ार
1962
Gulshan-e-Bekhar
1982
1998
गुलशन-ए-बेख़ार
1874
हज़रत शेफ़्ता के मुख़्तसर हालात
1915
Intikhab-e-Kalam Mustafa Khan Shefta
1959
हज़ार दाम से निकला हूँ एक जुम्बिश में जिसे ग़ुरूर हो आए करे शिकार मुझे
शायद इसी का नाम मोहब्बत है 'शेफ़्ता' इक आग सी है सीने के अंदर लगी हुई
दिल मत टपक नज़र से कि पाया न जाएगा जूँ अश्क फिर ज़मीं से उठाया न जाएगा
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