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वहाब दानिश

1930 - 2004 | रांची, भारत

वहाब दानिश

ग़ज़ल 4

 

नज़्म 8

अशआर 5

जंगलों में घूमते फिरते हैं शहरों के फ़क़ीह

क्या दरख़्तों से भी छिन जाएगा आलम वज्द का

खुल गया राज़ छुपी चाह का सब महफ़िल पर

नाम ले कर जो मिरा उस से पुकारा गया

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जब सफ़र की धूप में मुरझा के हम दो पल रुके

एक तन्हा पेड़ था मेरी तरह जलता हुआ

वो रंग का हुजूम सा वो ख़ुशबुओं की भीड़ सी

वो लफ़्ज़ लफ़्ज़ से जवाँ वो हर्फ़ हर्फ़ से हसीं

इन पर्बतों के बीच थी मस्तूर इक गुफा

पत्थर की नरमियों में थी महफ़ूज़ काएनात

पुस्तकें 1

 

"रांची" के और शायर

 

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