ज़ुबैर अली ताबिश के शेर
तुम्हारा सिर्फ़ हवाओं पे शक गया होगा
चराग़ ख़ुद भी तो जल जल के थक गया होगा
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वो जिस ने आँख अता की है देखने के लिए
उसी को छोड़ के सब कुछ दिखाई देता है
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किसी भूके से मत पूछो मोहब्बत किस को कहते हैं
कि तुम आँचल बिछाओगे वो दस्तर-ख़्वान समझेगा
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पहेली ज़िंदगी की कब तू ऐ नादान समझेगा
बहुत दुश्वारियाँ होंगी अगर आसान समझेगा
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इस दर का हो या उस दर का हर पत्थर पत्थर है लेकिन
कुछ ने मेरा सर फोड़ा हैं कुछ पर मैं ने सर फोड़ा है
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शायद क़ज़ा ने मुझ को ख़ज़ाना बना दिया
ऐसा नहीं तो क्यूँ मुझे दफ़ना रहे हैं लोग
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