'अजब है खिड़की नैनों की जो बंद करूँ तो देखूँ सब
'अजब है खिड़की नैनों की जो बंद करूँ तो देखूँ सब
इतना नूर है भीतर मेरे जैसे भीतर बैठा रब
हज़रत मेरे हुए हैं जब से मैं इतराई फिरती हूँ
कितनी दौलत पाई मैं ने दिन सोना है चाँदी शब
भीतर बैठा ख़ुद को निहारे और करे अटखेल कई
साँसों की लहरों में डूबे उभरे और दिखलाए छब
हौले-हौले ख़ून की गर्दिश दिल के दफ़ को थपकाए
दिल शह-रग पे करे सवारी और ख़ुद ही झूमे बे-ढब
प्यारी थोड़ा देख के चलना कच्चे घड़े से पार न कर
दरिया 'इश्क़ का है तूफ़ानी जान हथेली पर है अब
कोई कोई ही इस मकतब से पास की डिग्री लेता है
एक बार जो आए याँ पर फिर वो याँ से जाए कब
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