'अजब सुख़न है असर का पता नहीं चलता
'अजब सुख़न है असर का पता नहीं चलता
कि इसमें ज़ेर-ओ-ज़बर का पता नहीं चलता
न जाने कब मिरी वहशत चराग़-पा हो जाए
मुझ ऐसे सोख़्ता-सर का पता नहीं चलता
भटक रहा हूँ मैं कब से ख़ुदा की बस्ती में
दबीज़ धुंद है घर का पता नहीं चलता
किसी को 'इल्म है अपनी इक-एक सा'अत का
किसी को शाम-ओ-सहर का पता नहीं चलता
ज़रा 'अमीक़ नज़र डालिए ख़राबे पर
कि ऐसी ख़ाक में ज़र का पता नहीं चलता
निकाले कौन से दश्त-ओ-दमन से राही को
गुज़र का राहगुज़र का पता नहीं चलता
ख़ला में क़ैद नहीं कोई वक़्त पर 'आज़र'
ख़ला में शाम-ओ-सहर का पता नहीं चलता
- पुस्तक : सूरजमुखी का फूल (पृष्ठ 83)
- रचनाकार : दिलावर अली आज़र
- प्रकाशन : रेख़्ता पब्लिकेशंस (2022)
- संस्करण : 2nd
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