बेकस इंसाँ
फ़ुटपाथ पे इक बेकस इंसाँ
तकलीफ़ में तड़पा करता है
दुनिया में कोई ग़म-ख़्वार नहीं
मजबूर है आहें भरता है
बरसात हो या जाड़ा गर्मी
हर मौसम एक गुज़रता है
एहसास न कपड़ों का तन पर
बस भूक के मारे मरता है
अम्बार पे कूड़े के जा कर
वो पेट का दोज़ख़ भरता है
फिर भी तुझ पे जाँ देता है
फिर भी तेरा दम भरता है
है वक़्फ़-ए-सितम दुनिया में जो
जाँ तुझ पे निछावर करता है
कुछ बोल मिरे महबूब ख़ुदा
क्यों उस पे जफ़ाएँ करता है
क्या तेरे ख़ज़ाने ख़ाली हैं
या तू भी किसी से डरता है
जब तेरा कोई क़ानून नहीं
करने दे जो इंसाँ करता है
जिस वक़्त से देखा है यारब
उस वक़्त से ये दिल डरता है
जो तुझ पे मरे जो तुझ से डरे
तू ज़ुल्म उसी पर करता है
आ अर्श से तू भी देख ज़रा
क्यूँकर तिरा बंदा मरता है
'नाशाद' की आँखों से अक्सर
तूफ़ाँ अश्कों का बहता है
स्रोत:
Toofan-e-Gham (Pg. 26)
- लेखक: राबिया सुलताना नाशाद
-
- प्रकाशक: न्यू बुक सोसाइटी ऑफ़ इंडिया, नई दिल्ली
- प्रकाशन वर्ष: 1966
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