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नज़्म
हमारी इस्तलाहों से ज़बाँ ना-आश्ना होगी
लुग़ात-ए-मग़रिबी बाज़ार की भाषा से ज़म होंगे
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
तुम्हें रुस्वा सर-ए-बाज़ार-ए-आलम हम भी देखेंगे
ज़रा दम लो मआल-ए-शौकत-ए-जम हम भी देखेंगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए