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नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
हुमुक़ की अबक़रिय्यत और सफ़ाहत के तफ़क्कुर ने
हमें तज़ई-ए-मोहलत के लिए अकवान बख़्शे हैं
जौन एलिया
नज़्म
वो सुब्ह कभी तो आएगी
संसार के सारे मेहनत-कश खेतों से मिलों से निकलेंगे
बे-घर बे-दर बे-बस इंसाँ तारीक बिलों से निकलेंगे
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
और तो मुझ को मिला क्या मिरी मेहनत का सिला
चंद सिक्के हैं मिरे हाथ में छालों की तरह
जाँ निसार अख़्तर
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उद्धरण
सआदत हसन मंटो
नज़्म
परछाइयाँ
मैं शहर जा के हर इक दर पे झाँक आया हूँ
किसी जगह मिरी मेहनत का मोल मिल न सका
साहिर लुधियानवी
शेर
ख़ुद जिसे मेहनत मशक़्क़त से बनाता हूँ 'जमाल'
छोड़ देता हूँ वो रस्ता आम हो जाने के बा'द
जमाल एहसानी
नज़्म
ख़िज़्र-ए-राह
और ये सरमाया-ओ-मेहनत में है कैसा ख़रोश
हो रहा है एशिया का ख़िरक़ा-ए-देरीना चाक
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हमारे उस्ताद
कितनी मेहनत से पढ़ाते हैं हमारे उस्ताद
हम को हर इल्म सिखाते हैं हमारे उस्ताद