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शेर
एक के घर की ख़िदमत की और एक के दिल से मोहब्बत की
दोनों फ़र्ज़ निभा कर उस ने सारी उम्र इबादत की
ज़ेहरा निगाह
ग़ज़ल
इश्क़ है अपना पाएदार तेरी वफ़ा है उस्तुवार
हम तो हलाक-ए-वर्ज़िश-ए-फ़र्ज़-ए-मुहाल हो गए
जौन एलिया
नज़्म
इल्तिजा
आशोब-ए-जहाँ की देवी से यूँ आँख चुराऊँगा कब तक
जिस फ़र्ज़ को पूरा करना है वो फ़र्ज़ भुलाऊँगा कब तक
आमिर उस्मानी
नज़्म
ज़ोहद और रिंदी
फ़रमाया शिकायत वो मोहब्बत के सबब थी
था फ़र्ज़ मिरा राह शरीअत की दिखानी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
कासा-ए-शाम में सूरज का सर और आवाज़-ए-अज़ाँ
और आवाज़-ए-अज़ाँ कहती है फ़र्ज़ निभाना है