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नज़्म
वालिदा मरहूमा की याद में
गिर्या-ए-सरशार से बुनियाद-ए-जाँ पाइंदा है
दर्द के इरफ़ाँ से अक़्ल-ए-संग-दिल शर्मिंदा है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
याद-ए-अलीगढ़
वो मख़्मूर नज़रें जो शर्मा रही थीं
बहुत अक़्ल-ए-सादा को बहका रही थीं
आबिदुल्लाह ग़ाज़ी
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नज़्म
सर-गुज़िश्त-ए-आदम
बनाया ज़र्रों की तरकीब से कभी आलम
ख़िलाफ़-ए-मअ'नी-ए-तालीम-ए-अहल-ए-दीं मैं ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हिन्दी इस्लाम
वहदत की हिफ़ाज़त नहीं बे-क़ुव्वत-ए-बाज़ू
आती नहीं कुछ काम यहाँ 'अक़्ल-ए-ख़ुदा-दाद
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
दलाएल से ख़ुदा तक अक़्ल-ए-इंसानी नहीं जाती
वो इक ऐसी हक़ीक़त है जो पहचानी नहीं जाती
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
ख़ब्त है ऐ हम-नशीं अक़्ल-ए-हरीफ़ान-ए-बहार
है ख़िज़ाँ इन की इन्हें आईना दिखलाए हुए
मजरूह सुल्तानपुरी
नज़्म
साक़ी
वो शय दे जिस से नींद आ जाए अक़्ल-ए-फ़ित्ना-परवर को
कि दिल आज़ुर्दा-ए-तमईज़-ए-लुत्फ़-ए-जौर है साक़ी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
महात्मा-गाँधी
तो उस की अक़्ल-ए-रसा काम वक़्त पर आई
मरीज़-ए-मुल्क है मम्नून-ए-चारा-फ़रमाई