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नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
बस इक पल हफ़ सदी का फ़ैसला करने ही वाला है
सुनो 'ज़रयून' बस तुम ही सुनो यानी फ़क़त तुम ही
जौन एलिया
ग़ज़ल
जौन एलिया
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ग़ज़ल
दस्त-ए-तलब कुछ और बढ़ाते हफ़्त-इक़्लीम भी मिल जाते
हम ने तो कुछ टूटे-फूटे जुमलों ही पे क़नाअत की
ज़ेहरा निगाह
ग़ज़ल
'ज़फ़र' वो ज़ाहिद-ए-बेदर्द की हू-हक़ से बेहतर है
करे गर रिंद दर्द-ए-दिल से हाव-हु-ए-मस्ताना
बहादुर शाह ज़फ़र
नज़्म
इस्राफ़ील की मौत
थी इसी के दम से दरवेशों की सारी हाव-हू
अहल-ए-दिल की अहल-ए-दिल से गुफ़्तुगू
नून मीम राशिद
ग़ज़ल
किरन सूरज की कहती है फिर आएगी शब-ए-हिज्राँ
सहर होती है 'अख़्तर' सो रहो ये हाव-हू क्या है