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नज़्म
मुफ़्लिसी
इक पाव सेर आने की दिल में लगा के आस
गोरी का वक़्त होवे तो गाता है वो बभास
नज़ीर अकबराबादी
नअत
لَم یَاتِ نَظیرُکَ فِی نَظَر مثل تو نہ شد پیدا جانا
جگ راج کو تاج تورے سر سوہے تجھ کو شہ دوسرا جانا
इमाम अहमद रज़ा खां बरेलवी
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उद्धरण
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
नज़्म
रिश्वत
अपनी तनख़्वाहों के नाले में है पानी आध-पाव
और लाखों टन की भारी अपने जीवन की है नाव