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नज़्म
मता-ए-ग़ैर
कौन जाने मिरे इमरोज़ का फ़र्दा क्या है
क़ुर्बतें बढ़ के पशेमान भी हो जाती हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
दुआ
आइए अर्ज़ गुज़ारें कि निगार-ए-हस्ती
ज़हर-ए-इमरोज़ में शीरीनी-ए-फ़र्दा भर दे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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रेख़्ता शब्दकोश
har shabe goyam ki fardaa tark ii.n saudaa kunam baaz chuu.n fardaa shavad imroz raa fardaa kunam
हर शबे गोयम कि फ़र्दा तर्क ईं सौदा कुनम बाज़ चूँ फ़र्दा शवद इमरोज़ रा फ़र्दा कुनमہَر شَبے گویَم کہ فَردا تَرک اِیں سَودا کُنَم باز چُوں فَردا شَوَد اِمروز را فَردا کُنَم
(फ़ारसी शेर का उर्दू की कहावत के रूप में में प्रयोग) हर रात मैं कहता हूँ कि कल इस जूनून से छुटकारा पाऊँगा मगर जब कल आता है तो फिर आज को कल पर टाल देता हूँ; टालमटोल करने वाला सफल नहीं होता, जो काम करना है वह तुरंत करना चाहिए और किसी आदत को छोड़ना बहुत मुश्
kaar-e-imroz ba-fardaa ma-guzaar
कार-ए-इमरोज़ ब-फ़र्दा मगुज़ारکارِ اِمروز بَفَرْدا مَگُزار
(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) आज का काम कल पर ना छोड़, काम को बरवक़्त अंजाम देने के लिए बतौर ताकीद-ओ-हिदायत बोला जाता है
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ग़ज़ल
वही है साहिब-ए-इमरोज़ जिस ने अपनी हिम्मत से
ज़माने के समुंदर से निकाला गौहर-ए-फ़र्दा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
शम्अ' और शाइ'र
گل بہ دامن ہے مري شب کے لہو سے ميري صبح
ہے ترے امروز سے نا آشنا فردا ترا
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अज़्म बहज़ाद
नज़्म
शोर-ए-बरबत-ओ-नय
आज़ाद हैं अपने फ़िक्र ओ अमल भरपूर ख़ज़ीना हिम्मत का
इक उमर है अपनी हर साअत इमरोज़ है अपना हर फ़र्दा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
तंज़-ओ-मज़ाह
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
नज़्म
क़ैद-ए-तन्हाई
कासा-ए-दिल में भरी अपनी सुबूही मैं ने
घोल कर तलख़ी-ए-दीरोज़ में इमरोज़ का ज़हर
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
लेख
शिबली नोमानी
नज़्म
हम लोग
मुज़्महिल साअत-ए-इमरोज़ की बे-रंगी से
याद-ए-माज़ी से ग़मीं दहशत-ए-फ़र्दा से निढाल