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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
बिजलियाँ जिस में हों आसूदा वो ख़िर्मन तुम हो
बेच खाते हैं जो अस्लाफ़ के मदफ़न तुम हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तुलू-ए-इस्लाम
हमारा नर्म-रौ क़ासिद पयाम-ए-ज़िंदगी लाया
ख़बर देती थीं जिन को बिजलियाँ वो बे-ख़बर निकले
अल्लामा इक़बाल
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शेर
वो जिन के ज़िक्र से रगों में दौड़ती थीं बिजलियाँ
उन्हीं का हाथ हम ने छू के देखा कितना सर्द है
बशीर बद्र
ग़ज़ल
'सीमाब' बे-तड़प सी तड़प हिज्र-ए-यार में
क्या बिजलियाँ भरी हैं दिल-ए-बे-क़रार में
सीमाब अकबराबादी
नज़्म
एक रह-गुज़र पर
शबाब जिस से तख़य्युल पे बिजलियाँ बरसें
वक़ार जिस की रफ़ाक़त को शोख़ियाँ तरसें
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
चर्ख़-ए-कज-रफ़्तार है फिर माइल-ए-जौर-ओ-सितम
बिजलियाँ शाहिद हैं ख़िर्मन को जलाने के लिए
सय्यद सादिक़ हुसैन
नज़्म
शम्अ' और शाइ'र
وسعت گردوں ميں تھي ان کي تڑپ نظارہ سوز
بجلياں آسودہء دامان خرمن ہوگئيں
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रामायण का एक सीन
कुछ बन नहीं पड़ा जो नसीबे बिगड़ गए
वो बिजलियाँ गिरीं कि भरे घर उजड़ गए