aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "برتن"
बरतर मदरासी
born.1924
लेखक
सर रचर्ड बर्टन
एफ एल ब्रेन
एफ़. एल. बरैन
नादिर अ'ली बरतर
1857 - 1938
जे. एस. फेरबरेन
डब्लू. डी हेलिबर्टन
मतबा बरन प्रकाश, बुलंदशहर
पर्काशक
मकतबा नाज़-ए-बरन, जामिया नगर, नई दिल्ली
आई. बरखन
फ़ोन ब्रन हार्डली
एस. के. बरमन, कोलकाता
जे. बरत रॉय
संपादक
क़मरुद्दीन बरतर
शिबर्त लाल
1860 - 1939
क्या बर्तन सोने चाँदी के क्या मिट्टी की हंडिया चीनीसब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चले गा बंजारा
घर नया कपड़े नए बर्तन नएइन पुराने काग़ज़ों का क्या करें
अब हर एक की समझ में आ गया कि चौधरी क़ासिम अली के पास क्यूँ इस क़दर दौलत है और क्यूँ उनकी इतनी इज़्ज़त है। जिन्नात आ कर उन्हें रुपये दे जाते हैं। आगे चलिए, ये पुलिस लाइन है। यहाँ पुलिस वाले क़वाएद करते हैं। राइट, लिप, फाम, फो। नूरी...
बस्ता अपनी जगह पर रखने और कोट उतारने के बाद वो बावर्चीख़ाने में अपनी माँ के पास बैठ गया और दरबारी की सरगम सुनता रहा जिसमें कई दफ़ा सारे गामा आता था। उसकी माँ पालक काट रही थी। पालक काटने के बाद उसने सब्ज़-सब्ज़ पत्तों का गीला-गीला ढेर उठा कर...
गिराँ-तर आमद अज़ तौक़-ए-अज़ाज़ील उमराव: हाँ हाँ, तुम तो मुझे तौक़-ए-लानत समझते हो। मैं तो रोज़ ख़ुदा से दुआ माँगती हूँ कि मुझ गुनाहगार को इस दुनिया से उठा ले या तुम्हारी इस्लाह कर दे। बूढ़े होने को आए, क़ब्र में पैर लटकाए बैठे हो, मगर ये मुई शराब ऐसी...
शायरी में महबूब माँ भी है। माँ से मोहब्बत का ये पाक जज़्बा जितने पुर-असर तरीक़े से ग़ज़लों में बरता गया इतना किसी और सिन्फ़ में नहीं। हम ऐसे कुछ मुंतख़ब अशआर आप तक पहुँचा रहे हैं जो माँ को मौज़ू बनाते हैं। माँ के प्यार, उस की मोहब्बत और शफ़क़त को और अपने बच्चों के लिए उस प्यार को वाज़ेह करते हैं। ये अशआर जज़्बे की जिस शिद्दत और एहसास की जिस गहराई से कहे गए हैं इस से मुतअस्सिर हुए बग़ैर आप नहीं रह सकते। इन अशआर को पढ़िए और माँ से मोहब्बत करने वालों के दर्मियान शेयर कीजिए।
दुनिया को हम सबने अपनी अपनी आँख से देखा और बर्ता है इस अमल में बहुत कुछ हमारा अपना है जो किसी और का नहीं और बहुत कुछ हमसे छूट गया है। दुनिया को मौज़ू बनाने वाले इस ख़ूबसूरत शेरी इन्तिख़ाब को पढ़ कर आप दुनिया से वाबस्ता ऐसे इसरार से वाक़िफ़ होंगे जिन तक रसाई सिर्फ़ तख़्लीक़ी अज़हान ही का मुक़द्दर है। इन अशआर को पढ़ कर आप दुनियाँ को एक बड़े सियाक़ में देखने के अहल होंगे।
‘याद’ को उर्दू शाइरी में एक विषय के तौर पर ख़ास अहमिय हासिल है । इस की वजह ये है कि नॉस्टेलजिया और उस से पैदा होने वाली कैफ़ीयत, शाइरों को ज़्यादा रचनात्मकता प्रदान करती है । सिर्फ़ इश्क़-ओ-आशिक़ी में ही ‘याद’ के कई रंग मिल जाते हैं । गुज़रे हुए लम्हों की कसक हो या तल्ख़ी या कोई ख़ुश-गवार लम्हा सब उर्दू शाइरी में जीवन के रंगों को पेश करते हैं । इस तरह की कैफ़ियतों से सरशार उर्दू शाइरी का एक संकलन यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है ।
बर्तनبرتن
Pot, Utensil, Vessel
Ameer Khusrau Ka Hindavi Kalam
अमीर ख़ुसरो
कह-मुकरनी
आब-ए-तसनीम
रुबाई
Aab-e-Gauhar
Aab-e-Zam Zam
काव्य संग्रह
Safar Dar-ul-Mustafa
Birhan Ki Kahani
मोहम्मद अंसारुल्लाह
अन्य
संत अमृत बानी
संकलन
Kumhar Ke Bartan
शाहिद ज़ुबैरी
Modern Birth Control
हकीम ख़ान
Lisan-o-Mutala-e-Lisan
व्याख्यान
Date of Iqbal's Birth
सय्यद अब्दुल वाहिद
Barhan
कृष्ण गोपाल अाबिद
Feliyat-o-Hayati Keemiya
Meri Yadon Mein Berlin
इशरत नाहीद
सफ़र-नामा / यात्रा-वृतांत
Sachchi Istariyan
घर नया बर्तन नए कपड़े नएइन पुराने काग़ज़ों का क्या करें
मैं क़हर आलूद निगाहों से बेबी को देखता और वो लकड़ियाँ उठा कर नीचे उतर जाती। फिर दाऊ जी समझाते कि बेबी ये कुछ तेरे फ़ायदे के लिए कहती है वर्ना उसे क्या पड़ी है कि मुझे बताती फिरे। फ़ेल हो या पास उसकी बला से! मगर वो तेरी भलाई...
“अल्लाह! मेरे अल्लाह मियाँ! अब के तो मेरी आपा का नसीबा खुल जाए। मेरे अल्लाह मैं सौ रक्अ’त नफ़िल तेरी दरगाह में पढ़ूँगी।” हमीदा ने फ़ज्र की नमाज़ पढ़ कर दुआ माँगी। सुबह राहत भाई आए तो कुबरा पहले ही से मच्छरों वाली कोठरी में जा छुपी थी। जब सेवईयों...
अलियासफ़ ख़ामोश हो गया और मोहब्बत और नफ़रत से, ग़ुस्से और हमदर्दी से, हँसने और रोने से दर गुज़रा। और अलियासफ़ ने अपने हम जिंसों को न जिन्स जान कर उनसे किनारा किया और अपनी ज़ात के अंदर पनाह ली। अलियासफ़ अपनी ज़ात के अंदर पनाहगीर जज़ीरे के मानिंद बन...
घर में बूढ़ा बाप रह गया था और छोटे बहन-भाई। छोटी दुलारी तो हर वक़्त भाभी की ही बग़ल में घुसी रहती। गली-महल्ले की कोई औरत दुल्हन को देखे या न देखे। देखे तो कितनी देर देखे। ये सब उसके इख़्तियार में था। आख़िर ये सब ख़त्म हुआ और आहिस्ता-आहिस्ता...
उस रोज़ जब मैंने अब्बा को अम्मी से कहते हुए सुना सच बात तो ये है मुझे बेहद ग़ुस्सा आया। "सज्जादह की माँ! मालूम होता है साहिरा के घर में बहुत से बर्तन हैं।" "क्यूँ?" अम्माँ पूछने लगीं।...
आ'म तौर पर ये समझा जाता है कि बदज़ाइक़ा खाना पकाने का हुनर सिर्फ़ ता'लीम याफ़्ता बेगमात को आता है लेकिन हम आ'दाद-ओ-शुमार से साबित कर सकते हैं कि पेशेवर ख़ानसामां इस फ़न में किसी से पीछे नहीं। असल बात ये है कि हमारे हाँ हर शख़्स ये समझता है...
मैंने हार कर उसके मुताल्लिक़ लिखने का ख़्याल छोड़ दिया। आठ साल हुए कालू भंगी मर गया। वो जो कभी बीमार नहीं हुआ था अचानक ऐसा बीमार पड़ा कि फिर कभी बिस्तर-ए-अलालत से ना उठा, उसे हस्पताल में मरीज़ रखवा दिया था। वो अलग वार्ड में रहता था, कम्पाउन्डर दूर...
जब तक उसकी बीवी बच्चे नहीं आए वो अपने ख़यालों ही में मगन रहा। न दोस्तों से मिलता न खेल तमाशों में हिस्सा लेता, रात को जल्द ही होटल से खाना खा कर घर आ जाता और सोने से पहले घंटों अजीब अजीब ख़याली दुनियाओं में रहता, मगर उनके आने...
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books