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शेर
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
एक आरज़ू
इस ख़ामुशी में जाएँ इतने बुलंद नाले
तारों के क़ाफ़िले को मेरी सदा दिरा हो
अल्लामा इक़बाल
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ग़ज़ल
इसी काएनात में ऐ 'जिगर' कोई इंक़लाब उठेगा फिर
कि बुलंद हो के भी आदमी अभी ख़्वाहिशों का ग़ुलाम है