aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "بھانجے"
उदय भानु हंस
born.1926
लेखक
सूर्यभानु गुप्त
born.1940
शायर
मक्तबा अल-फ़हीम मऊनाथ भंजन, यू. पी.
पर्काशक
वाहिद अली बांगे
born.1923
शोभा गुर्टू
1925 - 2004
कलाकार
सुमूइल वी भन्जन
भानू दत शर्मा
अनुवादक
ए. एन. भानोट
संपादक
मरकज़ी मकतबा अहल-ए-हदीस, मऊनाथ भंजन
दानिश कदा पब्लिकेशन्स, मऊनाथ भंजन
अदलिया पब्लिकेशन्स, मऊनाथ भंजन
हुमा फोटो स्टेट, मऊनाथ भंजन
शोबा-ए-तस्नीफ़ो-तालीफ़ दारुल-उलूम, मऊनाथ भन्जन
मकतबा नशीदिया, मऊनाथ भंजन
निखार पब्लिकेशन्स, मऊनाथ भंजन
अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़ह्म को तुझ से हैं उमीदेंये आख़िरी शम'एँ भी बुझाने के लिए आ
तमारा ने सैंडिल उतार कर पाँव सोफ़े पर रख लिए वो उसके क़रीब बैठ गया। उसके पाँव पर हाथ रखकर बोला, “इतने नाज़ुक छोटे-छोटे पैर। तुम ज़रूर किसी शाही ख़ानदान से हो।” “हूँ तो सही शायद।”...
पंचायत की सदा किस के हक़ में उट्ठेगी उसके मुताल्लिक़ शेख़ जुम्मन को अंदेशा नहीं था। क़ुर्ब-ओ-जवार, हाँ ऐसा कौन था जो उनका शर्मिंदा-ए-मिन्नत न हो? कौन था जो उनकी दुश्मनी को हक़ीर समझे? किस में इतनी जुर्अत थी जो उनके सामने खड़ा हो सके। आसमान के फ़रिश्ते तो पंचायत...
"वहीं जाता हूँ।" मौलवी अबुल ने जमाही लेकर कहा, "ज़रा सा भी अच्छा हुआ तो मेहरुन का ज़रूर पूछेगा। हो सकता है अल्लाह जल्ल-शानहू कोई सबील पैदा कर दे।" मौलवी अबुल काफ़ी देर तक वापस न आया। ज़ैबुन्निसा ने बुर्के को झाड़कर अलगनी पर डाल दिया और आरिफ़ के मुँह-हाथ...
फ़िल्म 'नौकर' की शूटिंग जारी थी। रफ़ीक़ उसकी मौसीक़ी मुरत्तब कर रहा था। बज़ाहिर वो अपने काम में पूरे इन्हिमाक से दिलचस्पी लेता था, मगर मैं साफ़ महसूस करता था कि रफ़ीक़ ग़ज़नवी हर वक़्त उलझन सी महसूस करता है। इसलिए कि उसकी ऐन नाक के नीचे (ये भी अंग्रेज़ी...
औरत को मौज़ू बनाने वाली शायरी औरत के हुस्न, उस की सिन्फ़ी ख़ुसूसियात, उस के तईं इख़्तियार किए जाने वाले मर्द असास समाज के रवय्यों और दीगर बहुत से पहलुओं का अहाता करती है। औरत की इस कथा के मुख़्तलिफ़ रंगों को हमारे इस इन्तिख़ाब में देखिए।
नयी नज़्म को विषयगत और शैली के लिहाज़ से समृद्ध करने में मुख्य भूमिका निभाई
मायूसी ज़िंदगी में एक मनफ़ी क़दर के तौर पर देखी जाती है लेकिन ज़िंदगी की सफ़्फ़ाकियाँ मायूसी के एहसास से निकलने ही नहीं देतीं। इस सब के बावजूद ज़िंदगी मुसलसल मायूसी से पैकार किए जाने का नाम ही है। हम मायूस होते हैं लेकिन फिर एक नए हौसले के साथ एक नए सफ़र पर गामज़न हो जाते हैं। मायूसी की मुख़्तलिफ़ सूरतों और जहतों को मौज़ू बनाने वाला हमारा ये इन्तिख़ाब ज़िंदगी को ख़ुश-गवार बनाने की एक सूरत है।
भांजेبھانجے
nephews
Chacha Abdul Baqi Aur Bhatije Bakhtiyar Khilji Ke Na Karname
मोहम्मद ख़ालिद अख़्तर
गद्य/नस्र
Chandi Banane Ke Nuskhe
ज़ियाउल हसन अमरोहवी
विज्ञान
Banjh
सआदत हसन मंटो
अफ़साना
Andaz-e-Bayan Aur
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
Sanwle Man Bhanwle
शेर अफ़ज़ल जाफ़री
काव्य संग्रह
Bhage Hai Bayaban Mujh Se
रशीद अमजद
Yaddasht Badhane Ke Amali Tareeqe
ऐजाज़-उल-हक़ अलवी
सन्त सिपाही
Lafzon Ke Tane Bane
शब्बीर अहमद शाद
Jan Bachane Ke Tareeqe
मार्तण्ड उपध्याय मंत्री सस्ता साहित्य, नई दिल्ली
एजुकेशन / शिक्षण
Aanke Banke
हंस राज रहबर
नॉवेल / उपन्यास
Wivhar Bhano
दयानन्द सरसवती जी महाराज
Bhagte Lamhe
अब्दुल्लाह जावेद
Bahane
इफ़्फ़त मोहानी
उपन्यास
Samundar Aur Aag
“ऐ दुलहिन! बच्चा है। बच्चा है री दुलहिन! बच्चा है।”, मगर अम्माँ ने ग़ुस्से में दो चार हाथ जड़ ही दिए जो मरयम ने अपने हाथों पर रोके और मुझे उठा कर अपनी कोठरी में क़िला-बन्द हो गईं। मैं मरयम के अंधेरे क़िले में बड़ी देर तक ठुस-ठुस कर के...
मैंने माया को पत्थर के एक कूज़े में मक्खन रखते देखा। छाछ की खटास को दूर करने के लिए माया ने कूज़े में पड़े हुए मक्खन को कुएँ के साफ़ पानी से कई बार धोया। इस तरह मक्खन के जमा करने की कोई ख़ास वजह थी। ऐसी बात उ'मूमन माया...
सर्दियों में अनवर ममटी पर पतंग उड़ा रहा था। उसका छोटा भांजा उसके साथ था। चूँकि अनवर के वालिद कहीं बाहर गए हुए थे और वो देर से वापस आने वाले थे इसलिए वो पूरी आज़ादी और बड़ी बेपर्वाई से पतंग बाज़ी में मशग़ूल था। पेच ढील का था। अनवर...
लतरी, चोर और चकमा बाज़ होने के इलावा नानी परले दर्जे की झूटी भी थीं। सबसे बड़ा झूट तो उनका वो बुर्क़ा था जो हर-दम उनके ऊपर सवार रहता था। कभी इस बुर्क़े में निक़ाब भी थी। पर जूँ-जूँ मुहल्ला के बड़े बूढ़े चल बसे या नीम अंधे हो गए...
“देखो बेगम, मैं ख़ुदा की क़सम खा कर कहता हूँ कि क़लम मैंने किसी दोस्त को नहीं दिया। हो सकता है कि तुमने अपनी किसी सहेली को दे दिया हो।” “मैं क्यों इतनी क़ीमती चीज़ किसी सहेली को देने लगी। वो तो आप हैं कि हज़ारों अपने दोस्तों में लुटाते...
“है एक…”, वजाहत ने उसी बे-ख़याली से जवाब दिया। बौबी मुमताज़ ज़ीने पर से उतर के उनकी तरफ़ आया। “कहाँ भाग गए थे?”, वजाहत ने डपट कर पूछा।...
میں خود عالم ہوں، میرے باپ دادا عالم تھے۔ بھلا میں تو اس قسم کی فضولیات کی طرف توجہ بھی نہ کرتا مگر کیا کروں ضرور ت سب خیالات پر حاوی ہو گئی اور مجھے قیام مشاعرہ پر مجبور کیا لیکن بڑی مصیبت یہ ہے کہ ایک تو اس شہر...
’’نوکر تو ایک اعتبار سے میاں جان تم بھی ہو۔‘‘ کشن چند اخلاص نے یوں مسکراکرکہا کہ اس کی بات کا برا ماننا محال تھا۔ ’’اعتماد الدولہ کے نہ سہی، ان کے بھانجے اور سگے داماد کے سہی۔ ہم نیک و بد سبھی تمہیں سمجھائے جاتے ہیں۔ آگے تمہاری مرضی،...
जब तक हमको किसी चीज़ की ज़रूरत न हो उसकी हमारी निगाहों में क़दर नहीं होती। हरी दूब भी किसी वक़्त अशर्फ़ियों के तौल बिक जाती है। कुँवर साहब का काम एक बेलौस आदमी के बग़ैर रुका नहीं रह सकता था। इसलिए पंडित जी के इस मर्दाना फे़’ल की क़दर...
یعنی محبوب نے جمائی لیتے ہوئے جب دونوں ہاتھ اٹھا کر نیچے کرلیے تو یہ معلوم ہوا کہ گویا دو بجلیاں چمک کر زمین پر گر پڑیں۔ سیدغلام نبی پسر سید محمد باقر، سید عبد الجلیل بلگرامی کے بھانجے تھے، ۲ محرم ۱۱۱۱ھ میں پیدا ہوئے۔ سیدعبد الجلیل اس زمانے...
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books